________________
·
( ३५ ) :
..
पेख विलख मुख कान || बैठ्यो तटनी तट पर सोचे व्यर्थ भयो हैरान ॥ करम गति टरै नहीं टारी ॥ ६०॥५॥ कान्ह फिर साहस : दिल धरके ।। लियो इक लक्कड जल तर के || तास के खंड खंड करके ॥ बांधलई : मौली मन भरके || दोहा || आयो नगर वजार में || वेचन के हित कान ॥ तिनः . अवसर तिन नगर में सजी श्री पति सेठ सुजान वसै शुध वारै व्रत धारी॥६०॥६॥ * सेठनो चंपक अनुचरजी॥ गयो वाजार हरप धरंजी | मिल्यो कठियारो कान्हरजी || मोल ले भार चल्यो घरजी।दोहा।। चोखो चंदन वामना || महिके गंध महांन ॥ तदपि काठ के माल कान्ह ने || बेच्यो विन पहचान
1