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( ३८ ) मोहनी । अदुत रूपारेल ॥शची होय सर मिततस आगे कंचन की सी वेल कमल नयनी काम न गारी॥ध०॥१२|| कान्ह के वदन मदन छायो । करण रति को स्यांसे चायो॥ एतले शशि धर दीख्यायो ॥ इंदु लखि नियम याद आयो । दोहा ॥ पून मरें दिन में कियो । परनारी परिहाराअव सर आये कदियन लोप॑ ॥ मुगुरु वचनकी 'कार त्याग तो ड्यां हो सी ख्वाधि०॥१३॥ दिसा कोमिस वनांय सट क्यो ।घनों ही वेश्या ने हट क्यो । दियो वेश्यां को वेश 'पट क्यो । मध्य वाजारें जा खट क्यो । ॥ दोहा।। निज पट ओढी सोगयो।। सूनी देखी हाट ॥ विलख वदन को स्याँ कान्हड़