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( .४१ ) . करुणा से ॥ दोहा ॥ चंदन भारो वेचवा।। कान्हड आयों स्वाम ॥ चंदन सम कॅचन में दोधों ।। राखन ब्रत अभिराम भई वेश्यां भी इकरारी॥१०॥१९।। बात सुन सव धन भूधवन।।दियो कान्हड को हरष घनो प्रसंसा कानी सब जनने।एतले वन पालक पभने।। दोहा॥ज्ञानी गुरू समोसरया।।चालो वेदन
राज ॥ प्रमुदित हे राजा गयो सजी। मुनि - वंदन के काज साथ ले सारी सरदारी ॥ध०॥
२०करें नृप परसन पग लागी।।कोंन चारोंमें सोभागी कहें मुनि चारों ही त्यागी।।अधिक है कान्ह धरमरागी।दोहा।साधरमी लखि कान्ह
को।दियो सचिव पदसासाकान्हड राज ऋद्धि : :: सुखभोगीलीयों संजम भार भयो सुर एका भो .
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