________________
की ऊभी जो वे वाट हाथ लिये कंचन की झारी॥ध॥१४||भयो परभात निशावीती।। कान्ह आयो न जुडी प्रीती ॥ हती वेश्या के ये रीती॥ मुफत धन-परको नां छोती दोहा।। नियम आफ्नो पालवा॥ले गणि का सब लारः ॥ कान्हड मू क्यों ते धन 'जइने मेल्यो नृप दरवार । विनय कर बात कही सारी ॥ध०॥ १५ ॥ बात सुन नृप विष्मय आंन्यों ॥ केम वह पुरुष जाय जा न्यों । करण निर्णय दिलमें ठान्यों ।। बुला यो अनुचर मन मान्यों । दोहा ॥ पुरमें पड ह पिटावियो। सुनलीजो सहुकोय ॥काम.
लताके घर धन तजके भाग गयो जे होय।। - प्रगट सो होवे इनवारी ॥ध ॥१६॥आय तव