Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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३७ " के टिंग जाके । दियो सबधन अमरस पाके गये रसिया मुख बिलखाके ।।दोहा।। देख द्रव्य गणिका उठी। आईसन मुखधायः ।। आगे. आवो प्राणशरजी धन तुम तुमरी माय विहसि गल गल वैय्यांडारी॥ध्रु०॥१०॥ नायका नापित तेडायो॥क्षौर अरु उबटन करवायो ॥ सुगंधित जल से न्हवरायो । कान्ह मन परमानंद पायो । दोहा॥ पट भूषण पहिरायकें ॥मोजन सरस जिमाय।। देताम्बूल प्रेम अति पोख्यो. हाव भाव दर सायं ।। चढीले.जाय चित्रसारी॥ १॥ सहेली सवरी वुलवाई।आप शृंगारित हो आई ॥रागना नाटक कर गाई॥केल को सलता दिखलाई ॥दोहा.कामलता मन,

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