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द्वद मचाता है ।।दारुण दुख क्याहैं दुनियाँ में जिससे जग दुख पाता है । ज्ञानी कोंन कहावै जो छल क्रोध मान तृष्णा टारोकन
राएकांतिक आत्यंतिकहित को चेतन का कहियै सुविचारसरण कोन भाख्यो जिन • जीने इस अपार सँसार मझार ।। अनुपम सुख बो कहीं कोनसा जासे सुखी कहै अन गार।कहो बिज्ञवर अमृत क्या है कोटि ग्रंथ का कर निरधारानीरागीका कहो अप्रमत-सत
वचतोष दया धाक जंगम तीरथ को हे ' जगमें कहो सुज्ञजन देके ध्याना|उत्तम धर्म' .: दलाल हुवाको कहो जिना गम के परिमान॥
जिन शाशन का मूल कहा है मिलै न जाके बिनानिर्वाणऋिष भादिक चौवीसों जिनने