Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( ३३ ) से बतलाने अचित कुहे तू लगा घणे ॥ अभि निवेश उन्मत्त अज्ञ को आवे नहीं शुद्ध श्रद्धान ॥ जो० ॥ ३ ॥ शुध श्रद्धान विना सब जप तप क्रिया कलाप होय निस्सार ॥ विन समकित चउदह पूरख के धारी जांय नरक गंझारा॥ हे समकित ही सार पायः नर भव कीजे, सत असत विचार ॥ सुगुरु मगन सुपसाय पाय मति माधव कहै .सुनों नरनार ।। तजके पक्ष लखो जड चेतन व्यर्थ करो मत खेचातान ।। जो०॥ ४॥ इति ॥ . :॥ अथ लावनी अष्टपदी।
ब्रह्म बत, दिव शिव सुखकारी ॥ धन्य मुक्तजो पाले नरनारी।टेसाशील से सुख सम्पति
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