Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ कीजे सर्व। मोटो श्रीपयूषण पर्व जापै है। समाकित निर्भरजी,॥ सु० ॥२॥ तजिये. : बिरथा खेंचातान ।।जासै होय दिनों दिन हांना|उन्नति दयातनी सब थान कीजै संप खडग कर धरजी।।मु०॥ ३॥ आपस में यो बिद्या दान ॥ वच्छल ताई का धर. ध्यान ॥ वोलो प्राकृत में बुधवान अन्यों अन्य मिलो जहं परजी।मु०॥४॥ हिंसा धरम तनों परचारप्रति दिन वढतो जायं अपारा।याको करो कछू प्रतिकार बिलकुल वनों मती खुदगरजी।सु०॥५॥स्वपर समय तनों हाय जानः।। सोही मुनि दै अवशव खान ।। यामें नहीं मान अपमान आगे", . संब मुनिगण की मरजी। सु०॥६॥ श्री .

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