Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( २१ )
जो बुधजन्नं ॥ दूषण सहित दान जो देवे दान नहीं सोतो दुख खान । स० ॥ ६ ॥ निर्बंद वस्तु चतुर्दश देवै निजकर सैंती होय 'प्रसन्न ॥ वहु आदेर से दान देकरे सकल दिन अनुमोदन्न ॥ भूषण पंच प्रकार कहे ये सजो भव्यं पाके नर तन्नू ॥ दानं धर्म tha सब को तन मन धन अरपन्न | माधव दान महातम बरण्यो सुगुरु मगन मुनि को धर ध्यान || स० ॥ ७॥ इति ॥ ॥ पुनः ॥ " ॥ सुरपति सानिध करें टरें सब सँकट पाबै स्वर्ग सलील || शिव सुखदाई सुमति उर आंन अखंडित पाली शील | टेरें ॥ सीतळ जेलसम होय अनल थल समं समुद्र होयसिंह
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