Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
चर से । नृप पद पावै भोग सुख ओमतिरै भव सागरसे।।दान कृपाण धार कर दानी शूर हरें अघ अरि के प्राण ॥ स० ॥२॥ पात्र दान दिये होय निर्जरा अथवा पुण्य बंध ह्वे जाय ॥ दुखित जनों के दियेसे पुर लीक सुख भव भवथाय ॥ रिपु जन बैर तजै दीये से सज्जन प्रीत करे चितलाय ॥ अनुचर,भक्ती करै जश भाट बदै बश हो बैराय । दान कोऊ निर्फलन होय पे सब से उत्तम अभय प्रधान ॥सं०॥३॥ अभय दानकी महिमा 'जिन आगम में वरणी अपरंपार ॥ गज भव माहीं मेघनें देखो परत कियो संसार॥भयो मेघरथ षोडसमो जिन शांति नाथ सब जग सुखकार। जस

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57