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कहें आनन्द आयाहै ॥अ॥३॥ पुजायें कुगुरु ऐसेभी जिन्होंके धामधनदारा।।तिन्हों का मूढ लोगों को प्रगट झूठा खबाया है। "अगापुत्रके पठन पाठन में खरच कौडी. नहीं करना ॥ व्याह में वे अस्थ धन को लुटाना तें सिखाया है|अगा|दयामें धर्म जग जाने मूढ से मूढ भी माने धरमके हेत हिंसा भी करो ये तें सुनाया है |अ॥६।। धर्म जो होय हिंसा से फेर क्यों दया पाली जै॥ ध्यान देके लखो बुध जन्न घोर अधेर .. छाया है। अ०॥७॥ मुगुरु श्री मगनमुनि : ध्याई कहें माधव अविद्यान।।धर्म का नाम: लेलेके कर्म बंधन बढाया है।अदालाइति।।
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