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[९] सरल, सत्य और अचूक मार्ग दिखानेवाला १४२ दोहोका "आत्मसिद्धिशास्त्र" मात्र डेढ घंटेमे चाहे जहाँ, चाहे जिस स्थितिमे लिखना-यह गूढ और गहन आत्मज्ञानका विषय उन्हे कैसा हस्तामलकवत् था इसका सहज सूचन करता है।
"धन्य रे दिवस आ अहो ।' (संस्मरण पोथी १/३२) और 'अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ?" (आक ७३८) इत्यादि काव्योमे श्रीमद्जीने अपनी अतर्दशा और भावना सुवाच्यरूपसे प्रगट की है।
श्रीमद्जीके जीवनप्रसगोमे सर्वोच्च प्रामाणिकता, सत्यनिष्ठा, नीतिमत्ता,, अन्यको लेशमात्र भी दुभानेकी अनिच्छा और अनुकपा आदि अनेक अनुकरणीय गुणोका स्वाभाविक दर्शन होता है। ऐसे प्रसंग तथा विस्तृत जीवन जाननेके लिये इस आश्रमसे प्रकाशित "श्रीमद् राजचंद्र, जीवनकला' नामकी पुस्तक पढनेका अनुरोध करता हूँ।
श्रीमद्जीके हस्ताक्षरोक, एक लघु ग्रथ "श्री सद्गुरु प्रसाद" के नामसे इस आश्रमकी ओरसे प्रकाशित हुआ है । उस ग्रथकी प्रस्तावनामे श्रीमद्जीके वचनोके बारेमे परमकृपालु मुनिवर्य महात्मा श्री लघुराजस्वामीने जो लिखा है वह इस ग्रथके पाठकोको उपकारक होनेसे यहाँ देता हूँ
__ "परम माहात्म्यवान सद्गुरु श्रीमद् राजचद्र देवके वचनोमे जिसे तल्लीनता, श्रद्धा हुई है या होगी उसका महद् भाग्य है । वह भव्य जीव अल्पकालमे मोक्ष पाने योग्य है, ऐसी अतरग प्रतीति-विश्वास होनेसे मुझे सद्गुरुकृपासे प्राप्त हुए वचनोमेसे यह संग्रह 'श्री सद्गुरु प्रसाद' के नामसे प्रकाशित किया गया है। इसमेके पत्र तथा काव्य सरल भाषामे होते हुए भी गहन विषयोकी समृद्धिसे भरपूर हैं, अत अवश्य मनन करने योग्य है, भावना करने योग्य है, अनुभव करने योग्य है। ।
लघु कद होने पर भी श्री सद्गुरुके गौरवसे गौरवान्वित यह 'श्री सद्गुरु प्रसाद' सर्व आत्मार्थी जीवोको मधुरताका आस्वाद करायेगा, तत्त्वप्रीतिरसका पान करायेगा और मोक्षरुचिको प्रदीप्त करेगा। मुझे तो उनके हस्ताक्षर और मुद्रासहित यह ग्रथ देखकर वृद्धकी लकड़ीकी तरह आधार, उल्लासपरिणामके कारण, प्राप्त हुआ है।"
श्रीमद्ज़ीकी विद्यमानतामे हो उनके परमभक्त खभातवासी भाई श्री अंबालाल लालचदने, श्रीमद्जी की अनुमतिसे, मुमुक्षुओको लिखे गये पत्र तथा अन्य लेखोका संग्रह किया था और उसमेसे श्री अवालालभाईने परमार्थ सबधी लेखोकी. एक पुस्तक तैयार की थी जिसे खुद श्रीमद्जीने जांच ली थी और अपने हाथसे कुछ शुद्धि-वृद्धि की थी। . . .
यह सशोधित मूल पुस्तक, श्रीमद्जीके हस्ताक्षरके मूल पत्र, जो मूल पत्र मुमुक्षुओने वापिस मांग लिये थे उन पत्रोको नकलें, तथा अन्य लेखोकी हस्तलिखित नकलें-इत्यादि जो-जो साहित्य श्री अंबालालभाईने सग्रहित किया था वह सारा साहित्य श्री परमश्रुत प्रभावक मंडलको सौप दिया गया है।
___इस श्री परमश्रुत प्रभावक मडलकी स्थापना श्रीमद्जीने अपनी विद्यमानतामे सवत् १९५६ मे श्री वीतरागश्रुतके प्रकाशन तथा प्रचारके लिये की थी। यह मडल आज भी श्री वीतरागश्रुतके प्रकाशनका सुदर कार्य कर रहा है। इस श्री परमश्रुत प्रभावक मडलने इस श्रीमद् राजचद्र वचनामृतका प्रथम संस्करण वि० सवत् १९६१ मे प्रकट किया था और द्वितीय सस्करण वि० सवत् १९८२ में प्रगट किया था जिसमे बहुत-कुछ अप्रगट साहित्यका समावेश कर दिया गया था । श्रीमद्जीके लेख गुजराती भाषामे होते हुए भी दोनो सस्करण महत्तादर्शक नागरी लिपिमे मुद्रित किये गये थे। श्री परमश्रुत प्रभावक मडलने १. इसका हिंदी अनुवाद भी प्रकट हो चूका है ।