Book Title: Shrenik Charitra Bhasha
Author(s): Gajadhar Nyayashastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 5
________________ (२) ~~..camw-mahamnxnxx कलिकाल पंचमकालमें जैनधर्मका नामनिशान भी सुनना कठिन होजाता; क्योंकि वर्तमानमें इस भरतक्षेत्रमें कोई सर्वज्ञ रहा नहीं । जितने भर जैन सिद्धांत हैं उनके जानने का उपाय केवल शास्त्र रह गये हैं और उनका प्रकाश भगवान् महावीर अथवा गणाधर गौतमसे अनेक विषयों में गूढ२ प्रश्नकर महाराज श्रमिककी कृपासे हुआ है। महाराज श्रेणिक कब हुए इस विषयमें सिवाय इनके चरित्रको छोड़कर कोई पुष्ट प्रमाण दृष्टिगोचर नहीं होता। जैनसिद्धांतके आधारसे भगवान् महावीरको निर्वाण गये २४४० वर्ष हुए हैं और भगवान महावीरके समयमें महाराज श्रेणिक थे। इसलिये इस रीतिसे भगवान् महावीर और महाराज श्रेणिक समकालीन सिद्ध होते हैं। कहीं२ पर यह किंवदंती सुननेमें आती है कि महाराज श्रेणिक राजा चंद्रगुप्तके दादे वा परदादे थे। श्रेणिकचरित्र । ___ यह संस्कृत ग्रंथ भट्टारक शुभचंद्रका बनाया हुआ है। और यह भाषा श्रेणिकचरित्र उसीका अनुवाद है । ग्रंथकारपरिचय।। श्रेणिकचरित्रकी अंतिम प्रशस्तिमें भट्टारक शुभचंद्रने मूलसंघकी प्रंशसा की है इसलिये यह जान पड़ता है कि महाराज शुभचंद्र मूलसंघके भट्टारक थे एवं इसी प्रशस्तिमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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