Book Title: Shravaka Pratikramana Sutra Author(s): Vijaymuni Shastri Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 14
________________ व्याख्या : पांच महावतों के पालन करने वाले, पाँच समिति और तीन गुप्ति के धारण करने वाले, मोक्षमार्ग के साधक साधु हैं । उक्त पाँच पदों को भाव-पूर्वक किया गया नमस्कार, सब पापों का नाशक है । संसार के समस्त मंगलों में, यह नमस्काररूप मंगल, भाव . मंगल होने के कारण, सबसे श्रेष्ठ और सब से ज्येष्ठ मंगल है। :२: गुरु-वन्दनसूत्र तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमंसोमि, सक्कारेमि सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि । तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, सत्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ, आप कल्याणरूप हो, मंगल-रुप हो, देवता-स्वरुप हो, ज्ञान-स्वरूप हो, अर्थ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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