Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 9
________________ श्रामण्योपनिषद् ॥ मङ्गलम् ॥ ऐन्द्रं परं ज्योतिरिदं नमामि, प्राप्तात्मलाभं दशकात्मलाभात् । ज्योतिषि नो नापि तमांसि जातु, यस्योदये स्वोदयमाप्नुवन्ति ॥ (इन्द्रवज्रा) ॥क्षमा॥ श्रमणं भगवन्तं श्री - महावीरमुपास्महे । तितिक्षूणां मुमुक्षूणा - माद्योदाहरणं भवे ॥१॥ उपकारी स मे तस्मात्, क्षन्तव्यं हि मयेत्ययम् । क्षमायाः प्रथमो भेदः, कृतज्ञादिषु दर्शितः ॥२॥ असहनेऽपकारी स्या-देष क्षन्तव्यमित्ययम् । सुलभो दुःखभीरूषु, क्षमाभेदो द्वितीयकः ॥३॥

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