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मल्लिनाथनी कथा.
१३५ खवालो ने श्राव हाथवडे सुशोजित एवो कुबेर नामे यक्ष हतो. ते यना जमणा चार हाथमां वरद, अजय फरशी अने त्रिशूल इतां. तथा डाबा चार हाथमां मातुलिंग, सूत्र, मुजर अने तरवार दतां. श्री मल्लिनाथ प्रजुनी शासन देवी वैरोट्या नामनी चार हाथवाली देवी हती. तेमना जमणा बे हाथमां वरद, अने माला हती; तेमज डाबा हाथमा तरवार ने मातुलिंग हता. श्री मल्लिनाथ प्रजुना चालीश - जार साधु, पंचावन हजार साध्वी, सातसें आठ चौद पूर्वधारिजं, बावीशसें अवधिज्ञानि मुनिर्ज, एक हजार सातसें पचास मनः पर्यव ज्ञान धारि, बे हजार नवसें वैक्रिय लब्धिवाला मुनिर्ज, चौदसें वादलब्धिने धारण करनारार्ज, एक लाख तासी हजार श्रावको छाने त्रण लाख सात हजार श्राविकार्ड; ए प्रमाणे सघलो परिवार हतो.
पी क्रोडो देवतार्जए सेवन करेला तथा साधु, साध्वी, श्रावक ने श्राविकाए चार प्रकारना संघसहित श्री मल्लिनाथ प्रभु विहार करता ता पृथ्वीने पवित्र करवा लाग्या. कुमार अवस्थामां, व्रतपर्यायमां ने केवली अवस्थामां एम सर्व मली प्रजुनुं पंचावन हजार वर्षनुं श्रायुष्य हतुं पढी पांच साधु ने पांचसें साध्वीना परिवारसहित समेत शिखर उपर जइ त्यां एक मासनुं अनशन लइ फागण शुदी बारशने जरणी नक्षत्रमां एक विशमा तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ प्रभु मोक्ष लक्ष्मी पाम्या. ते वखते श्रासनकंपथी इंद्रोए अवधिज्ञानथी प्रजुनो मोक्ष जाएयो; तेथी ते मोउत्सव करवा माटे त्यां श्राव्या. क्षणमात्र नारकी जीवने पण सुख श्रापनारो मोह उत्सव करीने तेमज उपद्रव न थवाना हेतुथी प्रजुनी दाढ दांत विगेरे लइने सर्वे देवता नंदीश्वर द्वीपे गया; अने त्यां श्राइ महोत्सव करीने पढी पोतपोताना विमानना मानवस्थंज उपर वज्रमां प्रभुनी दाढ तथा दांतो उपद्रव न थवा माटे राख्या. श्रीारनाथ तीर्थंकर मोक्ष पाम्या पछी एक हजार क्रोड वर्षे श्रीमल्लिनाथ जिनेश्वर मोक्षपद पाम्या. हे मुनीश्वरो ! तमे, स्त्रीपणुं बतां पण सर्व माण सोनी मध्ये उत्तम तेमऊ तीर्थंकर पदवीने शोजावनारुं ने शीले करीने उज्वल एवं श्री मल्लिनाथना श्राश्वर्यकारी चारित्रने सांजलो. मोक्षपदनी इछावाला श्री मल्लिनाथ प्रजुए जेवी रीते निश्चयथी शीलत्रत पा