Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala

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Page 409
________________ मूलगाथान. ४०१ सूर्पनखानुं टुंकुं दृष्टांत एम बे के जेना पुत्र शंबूकने लक्ष्मणे मारी नाख्यो होवाथी पुत्रना शोकने सीधे महावनमां जटकती एवी रावनी बेन शूर्पनखा पंचवटीना वनमां निवास करीने रहेला राम थने लक्ष्मणने जोइ तेमना रूप अने सौभाग्यथी मूढ बनी तथा पुत्रनो शोक मूली जइ तेमनी इछा करवा लागी पढी प्रथम ते राम पासे गइ; पण रामे तो " म्हारे स्त्री बे." एम कहीने तेने काढी मूकी, तेथी ते लक्ष्मण पासे गई. लक्ष्मणे पण " तुं प्रथम म्हारा म्होटा जाइ पासे ग; माटे म्हारी जोजाइ बरोबर थ5. " एम कदीने विवेकी एवा लक्ष्मणे पण रजा थापी या शुर्पनखानुं विशेष चरित्र श्रागल सीतानी कथामां क - देवाशे, माटे त्यांची जाणी बेवुं. पूर्वनी वातने विशेष कड़े. पररमणी प्रार्थनायां दाक्षिण्यादपि मुह्य मा मूढ पररमणीपणा, दकिन्नानवि मुझे म भूढ || पतिष्यसि अनर्थे किं किल दाक्षिण्यं राक्षसी निः समं पंडसि किं किर्ल, देखिन्नं रकेस्सीदिं समं ॥ ८ ॥ शब्दार्थ - ( मूढ के० ) हे मूढ ! तुं ( पररम पिणार्ड के० ) पर - स्त्रीनी प्रार्थना करवामां ( दरिकन्नावि के० ) दाक्षिण्यपणाथी पण एटले निपुणपणाथी पण ( मा मुन के० ) न मोह पाम. कारण के, परस्त्री प्रार्थना करवा ( श्रत्थे के ) दुःखने विषे ( पमसि के० ) पडी - श, (किल के० ) निश्चय ( रकस्सीहिं के० ) राक्षसीनी ( समं के० ) साथै ( दरिकनं के० ) दाक्षिण्यपएं ( किं के० ) शुं ? ॥ ८ए ॥ विशेषार्थ - अरे मूर्ख ! तुं परस्त्रीनी प्रार्थना करवामां चतुराईथी पण मोद न पाम. अर्थात् परस्त्रीने विषे चतुराइयी क्रीडा न कर. कारण के, परस्त्रीनी प्रार्थना करवाथी निश्चय तुं दुःखमां पडीश. वली एरासीनी साथे चतुराइ शी ? स्त्रीउने प्रत्यक्ष राक्षसीपणुं बे. कह्युं बे केदर्शने हरते प्राणान्, स्पर्शने हरते बलम् ॥ मैथुने हरते कार्य, स्त्री हि प्रत्यक्षराक्षसी ॥ १ ॥ अर्थ- फक्त दर्शनथी प्राणने हरे बे, स्पर्शथी बलने हरे ने अने मै ५१

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