Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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मूलगाथा.
४३५ हवे महासतीनुं लक्षण कहे. या शीलनंगसामग्रीसंजवे निश्चला सती. एषा जो सीलनंगसोम-ग्गिसंनवे निचला संई एसौ ॥ इतराः महासत्यः गृहेगृहे सति प्रचुराः श्यरा महासईन, घरेघरे 'संति पनरो॥१०॥
शब्दार्थ- (या के०) जे स्त्री (सीखनंगसामग्गिसंजवे के०) शीलव्रतना नंगनी सामग्री बते (निचला के०) निश्चल . (एसा के०) एज स्त्री (सई के०) सती जाणवी. (श्यरा के०) बीजी (महा सर्च के०) महा सती (घरे घरे के०) घर घरने विषे (पउराठ के०) घणी (संति के) . ॥ १० ॥
विशेषार्थ- जे स्त्री शीलव्रत जंगनी सर्व सामग्री उतां एटले एकांत स्थान, स्नेह, मोह अने प्रार्थना इत्यादिक संकटमा श्रावी पडे बते पण पोताना शीलवतनुं रक्षण करवाने घणा श्राग्रहवाली , तेजसती कहेवाय बे; पण ज्यां सुधी बीजा कोशए प्रार्थना करी नथी अने संकटमां श्रावी पडी नथी त्यां सुधी शील पालवामां तत्पर एवी बीजी महा सती तो घरे घरे घणी बे. कयु डे के- विरला महिला शील-कविताः कति संकटे ॥ प्रायोऽनन्यर्थिता एव, सांप्रतं हि पतिव्रताः॥१॥ अर्थ- कलेशकारी संकट श्रावी पडवाढतां शुद्ध शीलवंत स्त्री बहु थोडी बे; परंतु श्रत्यारे तो घणुं करीने प्रार्थना करनार न मलवाने लीधे पतिव्रता .॥
हवे शीलवतने रक्षण करवानो उपाय कहे . तथापि एव एकांतादिसंगः नित्यमपि परिहर्तव्यः तदवि हूँ एगेंताई-संगो निश्चंपि परिरेयेवो ॥ येन च विशमः इंजियग्रामः तुम्बानि सत्वानि जेण ये विसमो इंदिय-गामो तुगइ सताई॥ ११०॥
शब्दार्थ- जो के शीलवत पालq बहु कठीन ने (तहवि के०) तो पण (एगंता के० ) एकांतादि (संगो के०) संग ( निचं के) निरंतर (परिहरेयवो के) त्याग करवो. (हु के०) निश्चय. (जेण के०)

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