Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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शब्दार्थ-बार वीरेने अने निरंतर (परिवजा ब्रह्मचर्य
मूलगाथान.
១០១ के०) पोतानां शीलरूप माणिक्यरत्नने (रकर के०) रक्षण करे बे.॥ए
विशेषार्थ- पूर्वे कहेला जावने जावनारो, पोतानां मन, वचन अने कायाने रोकनारो, इंजियने जितनारो श्रने निश्चल चित्तवालो मुनि होय अथवा गृहस्थ होय तो पण ते निश्चय पोताना निर्मल शीलरूप माणिक्य रत्नने रक्षण करे जे. ॥ ए
हवे मुनिने शीलनुं रक्षण करवानो उपाय कहे . एकांते मंत्रादि पार्श्वस्थादिकुसंगमपि सततं एंगते मंतोई, पासवाईकुसंगमवि सययं ॥ परिवर्जयन् नवविधब्रह्मगुप्तिगुप्तः चरेत् साधुः परिवेकंतो नवविद-बंनगुत्तिगुत्तो चरे साँदु ॥एए॥ शब्दार्थ- (एगंते के०) एकांतने विषे (मंताई के०) स्त्रीने साथे वात श्रथवा विचार वीगेरेने अने (पासबाश्कुसंगमवि के ) पासलादिना कुसंगने पण (सययं के०) निरंतर (परिवऊंतो के०) त्यजी देतो एवो भने (नवविहनगुत्तिगुत्तो के०) नव प्रकारना ब्रह्मचर्यनी गुप्तिथी रक्षण करायेलो ( साहु के०) साधु (चरे के०) विचरे. ॥ एए॥
विशेषार्थ- एकांत स्थानमा स्त्रीनी साथे वात अथवा विचार वि. गेरेने अने पासबादिकना कुसंगने निरंतर त्यजी देतो तथा स्त्रीउनी व. स्तीमां न रहे, स्त्रीउनी कथा न सांजली, तेमना आसन उपर न बेस
विगेरे नव प्रकारना ब्रह्मचर्यनी गुप्तिथी रक्षण करायलो साधु था पृ. थ्वी उपर विहार करे . मूल गाथामा “ पासबास्थादि" एमां श्रादि शब्द थापेलो बे; माटे आदि शब्दथी कुशीलीया अथवा तेमनो संग करनारा, मरजी प्रमाणे चालनाराउनो संग, स्त्रीउने रहेवाना स्थाननो संग पण त्यजी देवो. कयु डे के। खणमवि न खमं कालं, अणाययणसेवणं सुविहियाणं ॥
जग्गंधं होश वणं, तग्गंधो मार वाई ॥१॥ १ पासला बे प्रकारना जे. एक सर्वपासना अने बीजा देशपासला. जे ज्ञानदर्शन अने चारित्रनी उपासना करे ने उता पण जेने ते ज्ञान, दर्शन, चारित्र स्पर्शं नथी, ते सर्व पासना जाणवा अने जे कारण विना सजातरे आणे, अन्न, राजानुं अन्न विगेरेने जोजन करेने ते देश पामचा जाणवा.

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