Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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नंदयंतीनी कथा.
३१५
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बे तेज पुरुष जाणवो; माटे चालो आपणे द्रव्य उपार्जन करवाने अर्थे बीजा देशमां जइए.” सहदेवे कयुं. " तुं पितानी आज्ञा लहे . ते उपरथी समुद्रदत्ते पितानी पासे ज5 परदेशमां वदेपार करवा माटे जवानी मरजी देखाडी एटले सागरपोत शेठे कयुं के, " हे वत्स ! आपणे घरे कोटी द्रव्य बे, तो तुं तेने जोगव्य; कारणके श्रागणामां कल्पवृक्ष फले बते कयो पुरुष वनमां जाय ? " समुद्रदत्ते क. " हे तात ! जे पूर्वजोए संपादन करेलुं द्रव्य जोगवे बे तेउने दलका पुरुषो जाणवा. वली पिताए मेलवेली लक्ष्मी यौवन अवस्थामां मातानी पेठे जोगववाने योग्य बे. " ए प्रकारनां पुत्रनां उत्सादथी मनोहर वचन सांजलीने शोक तथा आनंदधी व्याप्त थयेला सागरपोत शेठे गद्गद् वाणीथी क. " हे पुत्र ! पिताए मेलवेल द्रव्यथी मदोन्मत्त थ येला तथा दुर्मद एवा घणा पुत्रो बे; परंतु पोते मेलवेला द्रव्यने जोगवनारा तथा दान करनारा एवा तो कोइकज विरला पुत्रो होय बे. " इत्यादि वचनने कतो एवो सागरपोत शेठ पुत्रना वचनने प्रमाण करी हर्ष पायो. पी मित्रसहित उत्साहवाला समुद्रदत्ते सर्व स्वजनोनी श्राज्ञा लइ अनेक मालथी जरावेला वहाणमां बेसी सारा मुहूर्ते प्रयाण शरु कस्युं. ते वखते तेणे पोताना मित्रने कयुं के, " हे मित्र ! में सर्वे स्वजनोनी आज्ञा लीधी बे; पण एक रजखला धर्मवाली प्रियानी श्राज्ञा लीधी नथी ए म्हारा मनमां बहु लागे बे. सहदेव मित्रे क. " घणा गाढा स्नेहवालो हुं हारी पासे बुं बतां जो तने चिंता पीडा करती होय तो कल्पवृक्षनी सेवा करनारा दीन बनेला जाणवा. क बे- दाक्षिण्य, कुलमर्यादा अने लगायी बंधाइ गया वे आत्मा जेना एवा पुरुषोने तथा पोतानी प्रीतिना पात्ररूप पुरुषोने मित्रो थकी बीजुं कांई औषध नथी. समुद्रदत्त पण प्रीतिरूप समुद्रनी लेहेरने वश्य थयो तो रात्री कोइ न देखे तेवी रीते पोताना घरना बारणा श्रागल थाव्यो. त्यां सुरपाल नामनो द्वारपाल जागतो हतो; तेथी तेने पोताना नामवाली वीटी एंधाण माटे आपी ने कां गुप्त समाचार कही पोते घरनी अंदर आव्यो. पठी जालीयानी अंदरथी जोयुं तो थोडा जलमां मालीनी पेठे तेथे पोताना वियोगथी श्राकुल व्याकुल थयेली नं
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