Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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सप्तमःसर्गः
२४१ वाणी कहेवा लाग्यो. के हे ना! सद्बोधनी प्राप्तिथी, नरकरूपी वृक्षप्रते वरसाद सरखा था मारां राज्यने पण मारे डोडवानी श्छा बे, तो हवे तारं राज्य ते शीरीते ग्रहण करुं? था सप्तांग राज्य खरेखर सात नरकोज , अने आ चतुरंगी सेना, उर्गतिरूप शय्यानो चौतरो ने. सुगतिप्रते गमन करता प्राणीने वचमा रहेली था राज्यलक्ष्मी बनना मि. शथी तेनुं आबादन करे . ( अर्थात् सुगतिमां जतां अटकावे .) वली चामरो तो तृष्णातुर राजानी देवपणानी इछाने हणीने तेने तिर्यंच गतिमां ले जाय बे. वली हाथी कानोथी, घोडा घुबडांउथी, कृपाणो पोतानां कंपनथी, अने वारांगनाउँ चामरोथी राज्यनुं चपलपणुंज जणावे . वली जे राज्यमां हमेशां बीक, जोह विगेरे बे, तेवां राज्यने धिक्कार . वली हे जार में तने कोपित को बे, तेथी हवे तने हुँ खमाववा माटे आवेलो इं; अने हुँ तो था राज्य बोडीने, दीदारूपी साम्राज्य ग्रहण करीश. एवी रीतनी पोताना मोटा नाश्नी वाणी सांजलीने, वालखिल्ले कंडं के, हे ज्येष्ट बंधु ! पूर्वनी परेंज त. मारो अनुचर थश्ने हुँ पण तुरत दीदाज लेश्श. एवी रीते ते बन्ने नाइल प्रीति पूर्वक विचार करीने सैन्यो सहित व्रतनी श्छाथी सुवगु मुनिनां चरण समीपे श्राव्या. पडी तेउये पोतानां राज्योपर मंत्रि सहित पुत्रोने स्थापीने दश क्रोड माणसोसहित दीक्षा लीधी. ते सघला जटाने धरनारा, कंदमूल अने फलोनुं लक्षण करनारा, गंगानी माटी शरीरपर चोलनारा, तथा सर्व बाबतोमा हितबुद्धिवाला थया; वली ते हमेशां मृगना बालको साथे रहीने (अर्थात जंगलमां वसीने) ध्यानमां आरूढ थर, जपमालाथी श्री युगादीश प्रजुने जपता हता. वली ते परस्पर दोष रहित थश्ने धर्मकथा करता हता, तथा आर्जव गुणमां रहीने एवी रीते तेये लाख वर्षों व्यतीत कर्यां. एटलामां त्यां नमिमुनिना बे विद्याधर शिष्यो शुत्र किरणोथी आकाशने दीपावता थका थाकाशमांथी उतर्या. मूर्तिवंत धर्म अने शांतरससरखा ते बन्नेने जोश्ने, सघला मुमुक्तु तापसोए अत्यंत नक्तिथी तेउँने नमस्कार कर्यो; तथा पु. ब्युं के, आप क्याथी यहीं पधार्या ? तथा हवे कश् जगोने जश् पवित्र करशो ? त्यारे मुनिए धर्मलाल देश्ने कयु के, श्रमो प्रजुनी सेवामाटे
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