Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 305
________________ शए३ अष्टमःसर्गः जाए बहु आदरमानथी तेउने पुब्युं के तमो कोण डो? तथा अहीं शा माटे एकठा थया को ? तथा तमो कोनुं ध्यान धरो बो ? त्यारे ते ए कडं के, हे राजन् ! श्रमो कलवंशी कंदमूल नक्षण करनारा जटाधारी तापसो बीए; वली श्रमो श्री युगादीश प्रजुने नमीए बीए, वल्कलो पेहेरीए बीए, ब्रह्मचर्य पालीए बीए, तथा नूमिपर शयन करीए बीए. ते सांजलीने चक्रधर राजा तेमने कहेवा लाग्या के, अरे ! तमो तो मिथ्यात्वथी मोहित थया थका शुरु धर्मथी उगाया बो ! केम के, ज्यारे तमो निःसंग थश् ब्रह्मचारी थया थका तपजपमा तत्पर रही श्री युगादीश प्र. जुने नजो डो, त्यारे अजय वस्तुना नोजनमां शा माटे रक्त थया डो? जेथी मिथ्यादृष्टि अज्ञानी रहेला बे, एवी गुप्त नसोवाली, जांगवाथी जेना सरखा नाग थाय तेवी, तथा पल्लवरूप वनस्पति अजय कहेली जे. जे वनस्पतिमा तीक्ष्ण सोश्ना मुखपर रहे एटला नागमां पण अनंता जीवो उपजे . तथा विनाश पामे , ते अनंतकायो कहेवाय जे. वली कीडाउँथी व्याप्त थएलां एवां उडुंबर, वड, पीपला, काकोडंबर, तथा अश्वन, नामना वृदना फलो पण खावां नहीं. वली मध, मांस, माखण तथा मय ए चार महा विगयोनो त्याग करवो. वली हिम, फेर, करा, सर्व ऋतुनां नवां फलो, रात्रिनोजन, बोरानुं श्राथj, वृंताक (रीगणां) अजाण्या फलफुलो, फुगाएल नोजन, बहुबीजां फलो, तथा काचा गोरससाथे द्विदलनुं नोजन, एटलानो पण त्याग करवो. एवी रीते प्रजुए बावीस वस्तु अजय कहेली , माटे तेने तज्याविना तमो श्री युगादीश प्रजुने शी रीते पूजी शको बो ? वली ते थजदयना जोजनथी हीन जाति, अज्ञानता, रोग, तथा दरिजपणुं मले, अने मृत्युबाद नरकगति मले . एवी रीतना प्रजुना वचनने जाणीने जे सुबुझि माणस ते अजयोनो त्याग करे, ते अनंत सुख नोगवीने पापरहित थर मोक्षमा जाय जे. एवी रीतना चक्रधर राजाना वचनोने सांजलीने ते तापसो वैराग्ययुक्त थर कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! थापे अमोने शुद्ध मार्ग बताव्यो. वली हे महाराज ! आंधलाउँए जेम चिंतामणि रत्नने, तेम अमारां जीवितनो आटलो काल श्रमोए मिथ्यात्वपणाथी फोकट गुमाव्यो. त्यारे चक्रधर राजाए तेमने कह्यु के, हे महानुनावो! हवे तमो खेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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