Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 307
________________ अष्टमःसर्गः शए प्पोथी वधाव्या. पनी पोताना पूर्वजोनी पेठे ते चक्रधर राजाए पुंडरिक गिरिना सर्व शिखरोपर प्रासादोनो उद्धार को. पनी चंप्रजासक्षेत्रमा समुपासे रहेला चंपन प्रजुना मंदिरमां तेमणे अहार महोत्सव कयों. पड़ी ते संघना लोकोसहित संपदाना घर सरखा रैवताचलपर चड्या. त्यां कामदेवने जीतनारा श्री नेमिनाथ नामना नावितीर्थंकर म. हाराजने संघना लोकोए हर्षथी स्तवनोयें करीने पूज्या. त्यां पण चक्रधर राजाए प्रासादोनो जीर्णोधार कयों, तथा बीजा पण केटलाक नवीन प्रासादो बंधाव्या. पड़ी ते तीर्थनी प्रदक्षिणा देश्ने राजा संघसहित नंदिवर्धन शिखरपर चड्या. त्यां पण तेमणे पूजा, दान, खामिवत्सल थादिक करीने विधिपूर्वक जीर्णोकार कों. पड़ी एवी रीते सम्मेतशिखर थादिक तीर्थोमां पण नक्तिथी यात्रा तथा जीर्णोद्धार करीने अनुक्रमे चक्रधर राजा उत्सवपूर्वक हस्तिनापुरप्रते श्राव्या. त्यां तेमणे पूर्वनीपरेंज त्रणखंड बरतनुं राज्य पालवा मांड्यु. एटलामां हवे इंशोथी पूजाएला श्री शांतिनाथ प्रजु पण केटलाक मुनिसहित सम्मेतशिखरपर थाव्या. त्यां लाख वर्षोनुं पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण थतुं जाणीने तेमणे नवसो मुनिउँसहित अनशन ग्रहण कयु. पनी अनुक्रमे चैत्रवदी तेरसने दिवसे पाबले पहोरे प्रजु ते मुनिउंसहित मोदे गया. त्यां सर्व देवोए पूर्वनी पेठेज तेमनो निर्वाण महोत्सव कर्यो, तथा त्यां तेमनुं मणिमय मंदिर बंधाव्यु. एवी रीते प्रजुना निर्वाणने सांजलीने वैराग्ययुक्त थ चक्रधर राजाए गुरु समीपे मनोहर चारित्र लीधुं. परी दश हजार वर्षोसुधि खड्गधारा सरखं चारित्र पालीने ते चक्रधर मुनि महाराजे केवलज्ञान मेलव्यु. एवी रीते केवलज्ञानरूपी सूर्यना किरणोधी समस्त जगतने हाथमा रहेला मणीनी पेठे जोता थका, तथा जव्यरूपी कमलना वनने विकवर करता थका, अने ध्यानथी बाहारना अने अंतरंगना सर्व अंधकारनो नाश करता थका ते श्री चक्रधर महा. मुनिराज सम्मेतशिखरपर रह्या थका, मोदनगरप्रते गया. एवी रीते दशमो उफार जाणवो, एवी रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिए बनावेला महा तीर्थ श्री शत्रुजयना माहात्म्यमां श्रीअजितखामी, सगर चक्री, श्री शांतिप्रनु, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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