Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
अष्टमःसर्गः
១១ ग्रीष्म साथे युद्ध करवा लाग्या. वत्री ते वखते श्रमासनी रात्रिए जेमताराउनीश्रेणि, तेमाकाशमांशंखसरखी उज्वल बगली देखावा लागी. वादलां प्रथमोदय वखते जे थोडी थोडी गर्जना करे , तेथी एम अनुमान थाय ने के, बलवान ग्रीष्म ऋतुना जयमाटे ते अप्रगट रीते विचार चलावे .ते वखते विरहित वादलांउरूपी बख्तरने पेहेरीने वायु, सेनापतिनी पेठे वारंवार अगाडीना नागमां स्फुरायमान थवा लाग्यो. वली ते समये ग्रीष्मने वीजलीरूपी खगथी उर्जय जाणीने, मेघोए तेने जीतनारुं धनुष्य धारण कर्यु. वली त्यां प्रथम तो ते वर्षा ऋतुये ग्रीष्म रुतुना राजा सूर्यने वादलांउथी एकदमथाठादित कर्यो. पड़ी तेजेए पूर्वे ग्रीष्मप्रते श्रादरवाली थएली पृथ्वीने बुटा बुटा तथा जाडा जलबिउरूपी पत्थरोथी ताडना करवा मांडी. ते वखते आकाशरूपी स्त्री बगलीरूपी हारवाली, वीजलीरूपी स्फुरायमान हास्यवाली, अने पुष्ट स्तनोवाली (वादलांउवाली) थर थकी लोकोने प्रिय थ पडी. ते वखते मेघरूपी स्वामी पोतानी पृथ्वीरूपी स्त्रीने जलधारारूपी दारो देवा लाग्यो, अने तेथी ते पण अत्यंत तृप्त थवा लागी. ते वखते जिनस्नात्र वखते जेम मेरु, तेम था शत्रुजय पर्वत दरेक मार्गोथी वहेता जलप्रवाहोथी व्यापी रह्यो. वली ते वखते मेघरूपी पोतानो खामी उपर चडवाश्री पृथ्वीरूपी नितंबिनी स्त्री ( विस्तारवाला कटीना पालना नागवाली स्त्री) उगेला (घासना) अंकुराउरूपी रोमांचने धारण करती थकी, अत्यंत पसीनावाली (पाणीउनां प्रवाहोवाली) थश्. एवी रीते वर्षा ऋतुने श्रावेली जाणीने प्रनु ते मुनि सहित देवोथी वींटाया थका तेज सुन शिखरपर रह्या. ते वखते केटलाक मुनि गुफाउंमां, केटलाको सिंहगुफाउँमां, तथा केटलाको सर्पना बिलना अग्रनागपर नियमो लेश्ने रह्या. त्यां इंजोए प्रजु माटे एक मंडप रच्यो, ते तेमां चतुर्मास रह्या. त्यां प्रजुनी सेवाथी केटलाक जीवो सम्यक्त्व पाम्या, केटलाको नजकनाव पाम्या, तथा केटलाकोए जीव हिंसा तजी. पली बहु उन्नति पामेलो वरसाद पण (मंद थ२) बंध पड्यो, केम के जडना (जलना) संगथी हलका थवी कंई उर्लज नथी ! पनी कादवोना समूहने सुकावती, आकाशने निर्मल करती, तथा कास श्रादिकनां पुष्पोने विकस्वर करती थकी शरद ऋतु श्रावी. ते श
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340