Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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अष्टमःसर्गः आप जय पामो? आपना पुत्रोए अष्टापदप्रते लावेली गंगा, खाइ पुरीने पृथ्वीने प्लावन करवा लागी . तेना पूरथी श्रासपासनी जमीन समुउमा रहेला दीपसरखी थर गश् . वली आ नरतखंडने छीप सरखो करी मेले एवं लागे . माटे हे स्वामी! ते पाणीथी अमारं श्राप रक्षण करो ? नहींतर श्रमोअनाथो मृत्यु पामीशं. एवी रीते जिननुं श्रागमन, पुत्रोनो नाश, तथा देशमा श्रावती रेलथी गजराएला चक्रीने इंजे कयुं के हे राजन् ! था बाबतमां तमो तर्कवितर्क शुं करो डो? तमो पुत्रोनो शोक तजी द्यो? अने ते शोकने दूर करवामां वैद्य समान एवा प्रजुने जजो? तेम प्रजुना नमस्कारथी उत्पन्न थनारा पुण्यने शोकथी वृथा नहीं करो? वली जह्वना पुत्र जगीरथने तमो रेलने रोकवा माटे हुकम करो ? केम के ते नागकुलप्रते थएला पोताना पिताना दोषने दूर करशे. ते सांजली चक्रीए निश्वास मुकी तथा श्रांखोमां किंचित अश्रु लावी, जगीरथने बोलावी पोताना खोलामा बेसाड्यो. पड़ी तेना मुखपर चुंबन करीने चक्रीए तेने कडं के, हे वत्स! तुं जो ? के श्रा नारतवंशपर केवी श्राफत श्रावी पडी ? दावानलथी दग्ध थएल वृदो ज्यां एवा अरण्यमां बाकी रहेला एक अंकुरानी पेठे तुंज फक्त आपणा कुलमां बाकी रहेल . माटे हे वत्स! हवे तुं नागेंनी सेवाथी लोकोना रक्षणमाटे दंडरत्नथी गंगाने पाबी तेना मुख्य प्रवाहमां लाव ? एवी रीतनी चक्रीनी श्राज्ञा मस्तकपर चडावीने लगीरथ पृथ्वीने दोजावता थका तथा सैन्यनी रजोथी सूर्यने थाछादित करता थका सैन्य सहित चालवा लाग्या.
पड़ी चक्री पण इंध तथा राणी सहित शोक दूर करवा माटे थादरसहित प्रजुने नमवा चाल्या. त्यां समवसरणमां बेठेला झानी प्रजुने तेजेए त्रण प्रदक्षिणा देश वंदन कर्यु; तथा पनी प्रजुनी स्तुति करी के, हे प्रजु ! तमो जय पामो ? अनंत कुःखोथी दुःखी थएला लोकोना शोकने दूर करनारा, तथा अंतरनी व्याधिने हरवामां प्रवीण एवा तमोप्रते न. मस्कार था ? एवी रीते नक्तिथी स्तुति करीने ते योग्य स्थानके बेग, त्यारे प्रनु पण क्लेशने हरनारी वाणी बोलवा लाग्या के, हे चक्री! श्रा संसार असार बे, राज्यसुख स्थिर नथी, पुत्र, मित्र,स्त्री श्रादिक दृढ बंधनो , शरीर, रोग अने शोकने करना , विषयो फेर सरखा बे,
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