Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२६२
शत्रुजय मादात्म्य. देवदूष्योनी वृष्टि थक्ष, तथा श्राकाशमां देवकुंकुनी वागवा लागी, चेलोज्य थयो, तथा देवो ब्रह्मदत्तनी प्रशंसा करता थका " जय जय" शब्द करवा लाग्या. “श्रा प्रजुए स्पर्श करेली नूमिने, तथा तेमना पगलांने को स्पर्श न करे तो सारं " एम विचारि ब्रह्मदत्ते त्यां धर्मचक्र बनाव्यु. पड़ी ते निर्मम प्रनु आर्य तथा अनार्य देशोमां विहार करता थका ध्यानरूपी अग्निथी पोताना घतिकोने बालवा लाग्या. मोतीना हारमा भने सर्पमां, मणिमां अने ढेफामां, तृणमां अने स्त्रीमां, शत्रुमां अने पुत्रमां, सुवर्णमां श्रने काचमां, सुखमां अने पुःखमां, नवमां अने मोक्षमा, उजाडमां अने वस्तीवाला नागमां, तथा दिवस, रात्रि अने संध्यामां पण प्रजु समदृष्टिवाला थया. वली ते प्रनु काचबानी पेठे गुप्तेंजिय, श्राकाशनी पेठे निर्लेप, पृथ्वीनी पेठे दमावंत, तथा सूर्यनी पेठे श्रद्भूत तेजवाला थया. एवी रीते ते प्रजु बार वर्षोसुधि सघला देशोमां विहार करीने फरीने अयोध्यामां श्राव्या. त्यां सहस्राम्र वनमां सप्तबद वृदनी नीचे ध्यानांतरने प्राप्त थर, गोदोहिकासनमा रह्यां थकां, पोस सुदी बारसने दिवसे चंछ रोहिणी नक्षत्रमा श्रावते बते, पाबले पहोरे, कोंना यथी प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयु; अने तेथी चौदरअप्रमाण लोकने, गतागतिने, तथा कर्मोना विपाकने ते हाथमा रहेला मणिनी पेठे जोवा लाग्या. हवे ते वखते श्रासनो कंपवाथी सो नक्तियें करीने, विमानोथी सूर्यबिंबनी स्पर्धा करता थका त्यां श्रावी पहोंच्या. पबी त्यां देवोए योजनना प्रमाणवालुं, सोना, रूपा, अने मणिना त्रण गढोवाटुं तथा चार छारोवावु समवसरण बनाव्यु.
हवे ते वखते सनामां श्रासनपर बेठेला सगर राजाने बडीदार नमस्कार करी कदेवा लाग्यो के, हे स्वामी! कोश्क बे पुरुषो बारणे थावी उना . पली राजानी थाज्ञाथी बडीदारे त्यां प्रवेश करावेला एवा ते पुरुषोमांथी एक राजाने नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी! हुँ वधामणी श्रापुं हुं के, प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं . पडी बीजो पुरुष पण नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! थाप जय पामो ? हुँ हर्षदायक वधामणी थापुं हुं के, श्रायुधशालामां चक्ररत्न उत्पन्न थयु ३. ते सांजली सगर राजानुं मन हिंचोला खावा लाग्युं के, श्रा बन्ने
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