Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
धवलाका गणितशास्त्र उक्त सिद्धान्तोंके प्रयोगसंबंधी उदाहरण धवलामें अनेक हैं। एक रोचक उदाहरण निम्र प्रकारका है'- कहा गया है कि २ के ७ वें वर्गमें २ के छठवें वर्गका भाग देनेसे २ का छठवां वर्ग लब्ध आता है । अर्थात्
२२०/२२६ = २२६ जब दाशमिकक्रमका ज्ञान नहीं हो पाया था तब दिगुणक्रम और अर्धक्रमकी प्रक्रियाएं (The operations of duplation and mediation) महत्वपूर्ण समझी जाती थीं। भारतीय गणितशास्त्रके ग्रंथोंमें इन प्रक्रियाओंका कोई चिह्न नहीं मिलता। किन्तु इन प्रक्रियाओंको मिश्र और यूनानके निवासी महत्वपूर्ण गिनते थे, और उनके अंकगणितसंबंधी ग्रंथोंमें वे तदनुसार स्वीकार की जाती थीं। धवलामें इन प्रक्रियाओंके चिह्न मिलते हैं। दो या अन्य संख्याओंके उत्तरोत्तर वर्गीकरणका विचार निश्चयतः द्विगुणक्रमकी प्रक्रियासे ही परिस्फुटित हुआ होगा, और यह द्विगुणक्रमकी प्रक्रिया दाशमिकक्रमके प्रचारसे पूर्व भारतवर्षमें अवश्य प्रचलित रही होगी। उसी प्रकार अर्धक्रम पद्धतिका भी पता चलता है। धवलामें इस प्रक्रियाको हम २, ३, ४ आदि आधारवाले लघुरिक्थ सिद्धान्तमें साधारणीकृत पाते हैं।
लघुरिक्थ ( Logarithm ) धवलामें निम्न पारिभाषिक शब्दोंके लक्षण पाये जाते हैं
(१) अर्धच्छेद- जितनी वार एक संख्या उत्तरोत्तर आधी आधी की जा सकती है, उतने उस संख्याके अर्धच्छेद कहे जाते हैं । जैसे- २म के अर्धच्छेद = म
अर्धच्छेदका संकेत अछे मान कर हम इसे आधुनिक पद्धतिमें इस प्रकार रख सकते हैंक का अछे ( या अछे क) = लरि क। यहां लघुरिक्थका आधार २ है।
(२) वर्गशलाका- किसी संख्याके अच्छेदोंके अर्द्धच्छेद उस संख्याकी वर्गशलाका होती है। जैसे- क की वर्गशलाका = वश क = अछे अछे क = लरि लरि क । यहां लघुरिक्थका आधार २ है।
(३) त्रिकच्छेद-जितने वार एक संख्या उत्तरोत्तर ३ से विभाजित की जाती है, उतने उस संख्याके त्रिकच्छेद होते हैं। जैसे- क के त्रिकच्छेद = त्रिछे क = लरि ३क । यहां लघुरिक्थका आधार ३ है।
१ धवला भाग ३, पृ. २५३ आदि. ३ धवला भाग ३, पृ. ५६.
२ धवला भाग ३, पृ. २१ आदि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org