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अन्तस्तोष
उस कल्पनाकार का अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान देखता है। वर्षों से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि मेरे पूज्य पिता डॉ. हीरालाल जैन ने बीस लम्बे सालों के अखूट सात्विक श्रम से पाठालोचन, विवेचन, निर्वृहण और भाषानुवाद द्वारा जिस जैन सिद्धान्त ग्रंथ षटखण्डागम का मानक सम्पादन कर षोड़सिक प्रस्फोटन प्रस्तुत किया था, उसका आस्वाद सुधीजनों को यथासाध्य सहजरूप से हो सके।
पूज्य मुनिवर उपाध्यायश्री ज्ञानसागर महाराज के आशीर्वाद और उनके तलस्पर्शी भक्तों की प्रतिनिधि संस्था प्राच्य श्रमण भारती के तत्पर सौजन्य से मेरा संकल्प फलवान बना।
___ डॉ. हीरालाल जैन जन्मशताब्दी समारोह समिति के तत्वावधान में, मुझे केन्द्र मान, मेरे आत्मीय, परिजन और मित्रों का परिवार मेरे पिता की
अद्वितीय उपलब्धि को श्रावक-सुलभ और सहज ग्राह्य बनाने में संलग्न हुआ। मैं इस अन्तस्तोष में उन सबको सहभागी बनाना चाहता हूँ जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं।
प्रफुल्ल कुमार मोदी