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परमपूज्य उपाध्याय १०८ श्री ज्ञानसागरजी
शुभाशंसा]
डॉ. हीरालाल जैन ने, कर्नाटक की महार्घ्य निधि षट्खंडागम एवं उसकी धवला टीका को, श्रवणबेलगोला के शिलाशासनों से निकालकर, इस महादेश
और अखिल विश्व के सुधीजनों को जैनधर्म के प्राचीनतम आगमग्रंथ से परिचित कराया है। उन्होंने षट्खण्डागम और उसकी धवलाटीका का सम्पादन और भाषानुवाद के साथ सोलह जिल्दों के लिये जो शास्त्रीय भूमिकाएँ प्रस्तुत की हैं वे ऐतिहासिक हैं।
द्वितीय सहस्राब्दि के पहले संपादक-शिरोमणि और जैनागम के दूसरे पारगामी विद्वान को, उनकी जन्मशताब्दी पर, सिद्धान्त चक्रवर्ती पदवी से विभूषित करना हमारे जैन साधु और श्रावक समाज का दायित्व है।
मेरे आशीर्वाद
मालपुरा (राज.) दि. ३.६.२०००