Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 278
________________ // 104 // // 105 // // 106 // // 107 // // 108 // // 109 // अइयारमलकलंकं पमायमाईहिं कह वि चरणस्स / जणियं पि वियडणाए सोहिंति मुणी विमलसद्धा एसा पवरा सद्धा अणुबद्धा होइ भावसाहुस्स / एईए सब्भावे पनवणिज्जो हव, एसो विहिउज्जमवन्नयभयउस्सग्गववायतदुभयगयाइं / सुत्ताई बहुविहाई समए गंभीरभावाई तेसिं विसयविभागं अमुणंतो नाणावरणकम्मुदया / मुज्झइ जीवो तत्तो सपरेसिमसग्गहं जणइ तं पुण संविग्गगुरू परहियकरणुज्जयाणुकंपाए / बोर्हिति सुत्तविहिणा पनवणिज्जं वियाणंता सो वि असग्गहचाया सुविसुद्धं दंसणं चरितं च / आराहिउं समत्थो होइ सुहं उज्जुभावाओ सुगइनिमित्तं चरणं तं पुण छक्कायसंजमो चेव / / सो पालिउं न तीरइ विगहाइपमायजुत्तेहिं . पव्वज्जं विज्जं पिव साहितो होइ. जो पमाइलो / तस्स न सिज्झइ एसा करेइ गरूयं च अवयारं पडिलेहणाइचेट्ठा छक्कायविघाइणी पमत्तस्स / भणिया सुयम्मि तम्हा अपमाई सुविहिओ होइ रक्खइ वएसु खलियं उवउत्तो होइ समिइगुत्तीसु / वज्जइ अज्जहेउं पमायचरियं सुथिरचित्तो कालम्मि अणूणहियं किरियंतरविरहिओ जहासुत्तं / आयरइ सव्वकिरिय अपमाई जो इह चरित्ती संघयणादणुरूवं आरंभइ सक्कमेवणुट्ठाणं / बहुलाभमप्पच्छेयं सुयसारविसारओ सुजई . se // 110 // // 111 // // 112 // // 113 // // 114 // // 115 //

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