Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ नवकारपभिइयं तो सज्झायं करइ तोऽभिवंदित्ता / इच्छाकारेणऽम्हे ओवहियं संदिसावेमो // 36 // वंदिय उवहिं अम्हेहिं पडिलेहिस्साह तो समुवउत्तो। कंबलअंतरकप्पाइयाई वत्थाइ पेहेइ // 37 // वइसिय सज्झायाई करेइ तो जाइ उचियवेलाए / साहुवसहीएँ वंदिय इरियं पडिक्कमइ उवउत्तो // 38 // आगमणं आलोयइ पोत्तिं पेहित्तु देइ वंदणयं / पच्चक्खाणं तो देइ वंदणं भणिय विहिणा ओ . // 39 // पच्चक्खाणं उचियं करेइ अहव कोइ उववासी / तो वंदणं न देइ पकरेइ नवं च संवरणं // 40 // तो ते च्चिय वंदणयं आलोयण खामणाइ पकरेइ / साहुप्पभिई वंदिय सुणेइ वक्खाणमाईयं // 41 // अह नत्थि गुरू अहवा अच्छंताण वि न जाइ वसहीए। केण वि कज्जवसेणं तो निययउवस्सए चेव // 42 // पडिलेहणाएँ अंते जइया पोत्ति पमज्जिउं पकओ / सज्झाओ तस्सुवरिं वंदणयं पच्चक्खाणं च // 43 // काऊण तत्थ उवहिं संदिस्सावेइ तो विहियचित्तो / वत्थाई पडिलेहिय सज्झायं कुणइ उवउत्तो // 44 // घडियदुगुद्देसम्मि अत्यंते सूरिए गुरुं नमिउं / आवस्सियं भणित्ता पोसहसालाए वच्चेइ // 45 // इरियं पडिक्कमित्ता अंतो वसहीए वामभागम्मि। . छत्थंडिलाइं पेहे दाहिणपासे वि एवइए तो काइयभूमीय वि छव्वामे दाहिणे वि छप्पेहे / पायं हत्थपमाणे दंडाउंछीण पडिलेहे // 47 // 314 // 46 //
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/f37c17ba077533cf7e654c9d222da656dfb8a702b05917642d0845789ef23733.jpg)
Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354