Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ दुविहतिविहेण दिव्वं एगविहं तिविहओ य तेरिच्छं / माणुस्सयं पि थूलं कारणं मेहुणं वज्जे // 12 // धणं धनं गिहं खेत्तं, रुप्पं हेमं चउप्पयं / दुपयं कुवियं चेव, नवभेओ परिग्गहो // 13 // धणधनकुवियरुप्पयसुवनचउपयगिहाण सव्वेसि / इच्छापमाणमेत्तो दम्मसहस्साण अट्ठण्हं . // 14 // . तत्थ धणं गणिमं धरिममेव मेयं च पारिछेज्जं च / पत्तेयं पत्तेयं न धरेमि सहस्सओ पस्ओं // 15 // तिल्लघयाणं घडगा पन्नासं होंति जावजीवाए। . .. धन्नस्स पन्न मूडा जाजीवं खेत्तविणिवित्ती // 16 // दो दो हट्टगिहाइं तिन्नि सयाई सुवनपरिमाणे / चालीसं रुप्पपला सतिवच्छा दोनि गावीओ // 17 // दो वसहा खर एगो पसुकरभाणं च मज्झ एक्ककं / अंकवडियस्स नियमो कम्मयरदुगं तहच्वेव // 18 // कुवियं सहस्समोल्लं इच्छामाणाउ होज्ज एयाओ / जइ कह वि अहियभावो धम्मे ता देमि नियमेणं // 19 // बंधवभइणेज्जाणं परिग्गहो होज्ज तस्स जइ चिंता / भत्तिज्जाईण य पालणम्मि जयणं करेस्सामि // 20 // अणहिलवाडपुराओ चउसु पि दिसासु जोयणाण सयं / दो जोयणाणि उर्दु अहोदिसि पुरिसपन्नासं // 21 // बीयगुणव्वयविसया भोयणओऽभिग्गहा ममं एए। . दुविहतिविहेण मंसं मजं एगविहतिविहेण // 22 // नायं दुब्भिक्खोसहिदोसीण विवज्जऽणंतकार्य च / / महुमक्खणपंचुंबरि गोरसमिस्सं चए विदलं . // 23 // 330
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