Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 343
________________ // 2 // // 3 // // 4 // // दानविधिः // धम्मोवग्गहदाणं दिज्जइ धम्मट्ठियाणं नरनाह ! / / जे खंतिमद्दवज्जवनियमपरा मुत्तिबंभधरा जेण अवटुंभेणं सिज्जासणभत्तपाणवसहीणं / अवठंमिया वरमुणी चरंति दंतिदिया धम्म दायगसुद्धं नरवर ! जं दाया देइ नाणसंपन्नो / सद्धापरो विणीओ मयमुक्को भत्तिपणयसिरो फासुयदाणं नाओववज्जियं जं च साहुजणजुग्गं / . लोगम्मि वि अविरुद्धं सुद्धं तं भन्नए दाणं वत्थं पायं पाउंछणं च तह कंबलं च सयणीयं / सयणासणपाणन्नं भेसज्जाई य जं सुद्धं सयमेव फासुयं जं जं साहू उद्दिसे वि न हु रइयं / तं दितगाहगाण वि बहुफलयं हवइ सुहदाणं जीवा वहे विकप्पे वि साहुणो एव देइ दाणवई / सो अंगारवणिज्जं दहिउं वरचंदणं कुणइ दाणं आगमदुटुं लोगविरुद्धं मयट्ठपडिबद्धो / दितो गाहगसहिओ नरिंद ! सो पडइ संसारे भावेण कप्पणिज्जं दिन्नं समणाय अक्खयं हवइ / जह वरसायरपडियं बिन्दुयमित्तं पि सलिलस्स एयं दायगसुद्धं गाहगसुद्धं पि राय ! निसुणेहि / . जस्स वि ! दिन्नं दाणं देइ फलं गाहगो सो हू . दाणं दिन्नं नरवर ! अफलं न हु हवइ एस परमत्थो / पत्ते तं पुनफलं हवइ अपत्ते अपुनफलं . w .. // 8 // // 10 // // 11 // 338

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