Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 322
________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // तो सयणगिहे गंतुं इरियं पडिक्कमइ भणइ सक्कथयं / भायणहत्थमुहाई पेहिय तो भुंजए विहिणा . भुत्तंते उद्वित्ता सक्कथयं भणिय गच्छए नियए / धम्मट्ठाणे तत्थ वि इरियं पडिकमिय आलोए आगमणं तो वंदिय जहासमाहीएँ आसणे ठिच्चा / सज्झायाई पकरइ पोत्थयाईणि वा वाए तईयपहरस्संते जाए पडिलेहणाअवसरम्मि / वंदिय इच्छाकारेण अम्हि पडिलेहणं करिमो वंदिय भणई दंडाउंछय संदेसह त्ति तो वंदे / मुहपोत्तिं पेहेमो भणित्तु तो पोत्तियं पेहे तलवत्थरणाईयं पेहिय परिहेइ तो नियंसणयं / पडिलेहिय परिहेई जइ पुण उववासओ होइ तो सव्वुवहिपमज्जण अणंतरं परिहणं पमज्जेइ / ठवणगुरु तन्निसेज्जं तप्पट्टाई पमज्जेइ कट्ठासण पाउंछण पोसहसालाइयं पमज्जेइ / . लहुयतरो अन्नो वा कज्जं उद्धरइ पेहेइ / परिठवइ सुद्धठाणे तत्थ यं जीवाइ जं विराहिययं / दीसइ तं पच्छित्तं समुदाइयलेक्खए किच्चं इरियं पडिक्कमेई एवं उच्चारपासवणमाई / - भूमीए जइ करई तह हत्थसया जया बाहिं .. गच्छइ कमिं कज्जे जलमाई वावि जइ विगिचेइ / तहिं सव्वत्थ वि कज्जे इरियं पडिक्कमइ उवउत्तो तो ठवणगुरुसयासे पोत्ति पेहेइ संदिसावेइ / अज्झायंतो वंदिय सज्झायं करह इय भणइ 313 // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //

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