Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ महत्तरागारेणं सव्वसमाहिव-त्तियागारेणं वोसि // भवचरिमं पच्चक्खाइ तिविहं पि चविहं पि वा आहारं असर्व पाणं.खाइमं साइमं, अनत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वस- माहिवत्तियागारेणं वोसड् // निरागारे तु-भवचरिमं पच्चक्खाइ तिविहं पि चव्विहं पिक आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेज सहसागारेणं वोसिइ // एक्कासणगे वि कए दिणचरिमं सफलमेव जेण तयं / थोवागारं इयरं बहुआगारं विणिद्दिटुं // 162 / एक्कासणाइ एत्तो देवसियं चेव होइ नायव्वं / निसिविरई जा जीवं तिविहं तिविहेण जेण कया // 163 / गिहिणो पडुच्चं दिवसं रूढिवसाओ भणंतऽहोरतं / तो तेर्सि निसिभोयणविरयाण वि गुणकरं चेव // 164 / पाएण होइ एयं रयणीभोयणवयस्स जं तेसि / आगाराण बहुत्तं इमं च संखित्तआगारं // 165 / जइ पुण निसिभत्तवयं दुक्कालभयाइकारणेहि विणा / गिहिणा वि हु पडिवन्नं चउव्विहाहारविसयं च // 166 / तो तस्स वि देवसियं एवं संभवइ तो दिणे सेसे / थोए वा बहुए वा कायव्वं न उण रयणीए // 167 / भणियं चरममियाणिं आभिग्गहियं भणामि लेसेण / तत्थागारा चउरो अहवा वि हवंति पञ्चेव // 168 / देसावगासिगाइसु दंडगगहणाइगोयरेसुं च. . अंगुट्ठमुट्ठिमाइसु नियमेसु हवंति चत्तारि . // 169 / 26
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