Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 307 // आहु असंते एवं सयं पि संढस्स बंभयारित्तं / तो विज्जमाणविसयं पच्चक्खाणं हवइ सहलं / // 306 // बज्झाभावे वि इमं पच्चक्खंतस्स गुणकरं चेव / आसवनिरोहभावा आणाआराहणाओ य न य एत्थ वि एगंतो सगडाहरणाइ एत्थ दिटुंतो / संतं पि नासइ लहुँ होइ असंतं पि एमेव // 308 // सगडोया (डस्सा) हरणं पुण किर केणइ माहणेण गीयत्थ / मुणिपुंगवपयमूले नाणाविहगोयरे नियमे // 309 // पडिवज्जंते बहुए तहाविहे माणवे निएऊणं / निग्गोयर त्ति अहला नियमा इह मन्नमाणेणं // 310 // उवहासबुद्धिण च्चिय निव्विसयं पि हु हवेज्ज जइ सहलं / पच्चक्खाणं मज्झ वि सफलं होउ त्ति भणिऊणं // 311 // जावज्जीवं पि इओ सगडं मे सव्वहा न भोत्तव्वं / नियमो एवंरूवो गहिओ साहूण पच्चक्खं . // 312 // तस्सऽन्नया कयाई कंतारुत्तिन्नछुहाकिलंतस्स / / एगा नरवइधूया अववसणकए पयत्तेण // 313 // उद्धूलियजंघजुयं अप्पुव्वं माहणं पलोइंती / पक्कन्नमयं सगडं वियरइ पत्तीए काउण . // 314 // तो सो तं दळूणं चिंतइ साहूहि सोहणं भणियं। अस्संभववत्थूण वि कहिचि जह संभवो होइ // 315 // तो सव्वमेव सच्चं पच्चक्खाणं इमं च मे सगडं / भक्खत्ताए पत्तं कहं अहं निययवायाए // 316 // चइऊण साहपुरओ नियवयणं लोविऊण भक्खेमि ? इय चिंतिय तं सगडं परिहरई सो दिओ सहसा // 317 // 306
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/210f800d8b9f2aa279ace2fc0d37d0582402ceb5c3473b4da9911b4e02b56997.jpg)
Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354