Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 10
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 282
________________ // 5 // // 7 // // 8 // // 9 // चउसद्दहणतिलिङ्गं, दसविणयतिसुद्धिपञ्चगयदोसं / अट्ठपभावणभूसण-लक्खणपञ्चविहसंजुत्तं . छविहजयणागारं, छभावणाभावियञ्च छट्ठाणं / इह सत्तसट्ठिलक्खण-भेयविसुद्धं च सम्मत्तं पुव्वमुणीहिँ कयाणं, गाहाणमिमाण कमवि भावत्थं / थोवक्खरेहिँ पयडं, वुच्छं सङ्केवरुइपत्थं परमत्थसन्थवो खलु, सुमुणियपरमत्थजइजणनिसेवा / वावनकुदिट्ठीण य, वज्जणमिह चउह सद्दहणं जीवाइपयत्थाणं, सन्तपयाईहिं सत्तहिं पएहिं / बुद्धाण वि पुण पुण सवणचिन्तणं सन्थवो होई गीयत्थचरित्तीण य, सेवा बहुमाणविणयपरिसुद्धा। तत्तावबोहजोगा, सम्मत्तं निम्मलं कुणइ. वावन्नदंसणाणं, निण्हवऽहाच्छन्दकुग्गहहयाणं / उम्मग्गुवएसेहि, बला वि मइलिज्जए सम्म मोहिज्जइ मंदमई, कुदिट्ठिवयणेहिँ गुविलढंढेहिं / दूरेण वज्जियव्वा, तेण इमे सुद्धबुद्धीहिं परमागमसुस्सूसा, अणुराओं धम्मसाहणे परमो / जिणगुरुवेयावच्चे, नियमो सम्मत्तलिंगाई तरुणो सुही वियडी, रागी पियपणइणीजुओ सोउं / इच्छइ जह सुरगीयं, तओऽहिया समयसुस्सूसा कंतारुत्तिन्नदिओ, घयपुण्णे भुत्तुमिच्छई छुहिओ / जह तह सदणुट्ठाणे, अणुराओ धम्मराओ त्ति पूयाइए जिणाणं, गुरूण विस्सामणाइए विविहे / अंगीकारो नियमो, वेयावच्चे जहासत्ती 273 // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 //

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