Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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त्रण बालावबोध सहित
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मोहमाहप्पं० संसारनउ मोह अजाणिवउं तेहनउं ए माहात्म्य महिमा छइ । कुणइ काई' थाई ? ॥ १९॥
[जि.] स्वजन सगा तेहनइ मोहि वा वली अथवा द्रव्यनइ लोभि लोक लीजइ । पण रम्य प्रधान सुधर्म जिनधर्म तिहां नो धिप्पंति न लीजइं । हा खेदे मोहनउं माहात्म्य प्रमाण ॥ १९॥ 5
[मे.] स्वजनादिकनइ अर्थना लोभ लगी लोक संसारनइ व्यापारि घातइं । हाट पाटणि वणिजव्यापार सीपवई । पणि सूधा स्वामीना भाष्या धर्मनइ मार्गि न घातइं । जे धर्म रम्य प्रधान छइ । हा इसइ खेदे । ते मोहनउं माहात्म्य जाणिवउं ॥ १९॥
[सो.] अधर्मी अनइ धर्मी जीव रहइं बेई ज वीसामानां० स्थानक छइ । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ गृहस्थहूई वीसामानउं स्थानक कहइ। " गिहवावारपरिस्समखिन्नाण नराण वीसमणठाणं । एगाण होइ रमणी अन्नेसि जिणिंदवरवाणी ॥२०॥
[सो.] गिहवावार० दिन सघलउ जे गृहस्थनउ व्यापार-5 व्यवसाय वाणिज्य काजकाम तेहनइं श्रमिइं करी जे पुरुष खिन्न ऊसना छइ, तेहहूई वीसमण वीसामानां स्थानक बेइ जि छइ । एगाण. एक जे अधर्मी संसाराभिलाखी जीव तेहहूइं रमणी स्त्री वीसामानउं स्थानक । तेह आगलि आपणउं काजकाम मंत्र गूझ कही समाधि प्रामई । उक्तं च श्रीउपदेशमालायां-' गुरु गुरुतरो अइगुरुः० पियमाइयअवच्चपियजणसिणेहो०'। अन्नेसिं बीजा विवेकी
१ कांई न थाइ. २ जि. जिणिंदवरधम्मो, मे, जिणंदवरधम्मो. ३ ते इं. ४ संसाराभिलाषी.