Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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प्रण वालावबोध सहित .
आचार जे लोक करई। हा हा इसिइ खेदि । ते मूढ मूर्ख ते आचार करतउ आपणपउं जिनभक्तपणउं किम कहइ ? ॥ १४५॥
.. [सो.] वीतरागइजिनुं वचन मानइ ते थोडा । ए वात कहइ छइ।
[जि.] एवडउ जैनभेद कांई ? तेहनउं कारण कहइ। .. 5 जं चिअ लोओ मन्नइ तं चिअ मन्नंति सयल लोआ वि। जं मन्नइ जिणणाहोतं चिअ मन्नंति किवि विरला ॥१४६॥
[सो.] जं चिअ० एक लोक जे बोल मानइं तेह जि बोल सघलाइ लोक मानइं । प्रवाहि पड्या प्राहि' संसाराभिलाषी सविहुं: जीवनां मन सरीषांइ जि हुई । जं मन्नइ० जे जिननाथ तीर्थंकरदेवा० जे बोल मानई कहई, केवलज्ञानि करी जाणीनइ, तेहू जि श्रीसर्वज्ञना वचन जे मानइं, लोकनउ प्रवाह कांई न मानइ ते केतलाइ विस्लाइ जि थोडाइ आसन्नसिद्धिक हुई ॥ १४६॥
[जि.] जे आचार लोक मानइ तेही ज आचार सघलाई लोक मानइं । पुण जे आचार जिननाथ मानइ ते आचार विरला थोडा केईएक भाग्यवंत मानइं ॥ १४६॥
[मे.] जे वस्तु मिथ्यात्वादिक प्रवाहि लोक मानइं ते सकल लोकमाहि मानीइ । अनइ जे जिननाथ मानइ कहइ ते जइ विरलउ कोई एक भव्य जीव मानइ ॥ १४६॥
[सो.] निश्चय नय आश्री श्रीसम्यक्त्वनूं स्वरूप कहइ। १
[जि.] अथ जे साहम्मी उपरि गाढउ स्नेह न करइं तेह उदिसी कहइ।
१ ते. २ जि. के, मे. कवि. ३ प्राहिई. ४ सर्वज्ञहैं. ५ कहइ छइ.