Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay

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Page 208
________________ परिशिष्ट १ धन्न ति पुरवरपट्टणइं, धन्न ति देस विचित्त । जिहि विहरइ जिणवइ सुगुरु, देसण करइ पवित्त ॥ ३२॥ कवणु' सु होसइ दिवसडउ, कवणु सु तिहि सुमुहुत्तु ।। जिहि वंदिसु जिणवइ सुगुरु, निसुणिसु धम्मह तत्तु ॥ ३३ ॥ सल्लुद्धारु' करेसु हउ, पालिसु दिदु संमत्तु । नेमिचंदु" इम वीनवइ, सुहगुरु-गुणगण-रत्तु ॥ ३४॥ . नंदउ विहि जिणमंदिरइं, नंदउ विहिसमुदाउ“। नंदउ जिणपत्तिसूरि गुरु, विहि जिणधम्म-पसाउः ॥ ३५॥ जिनेश्वरसूरि, जिनप्रबोधसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनपद्मसूरि, जिनलब्धिसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनोदयसूरि, जिनराजसूरि,० जिनवर्द्धनसूरि, श्रीसागरचन्द्रसूरि । शुभमस्तु ॥ छ । १ तइं. २ देश.. ३ जहिं. ४ कवण. ५ देसडओ. ६ कवण. ७ समुहुत्त. ८ जहीं. ९ निसुणि. १० तत्त. ११ सल्लुद्धार. १२ सुदड्ढ. १३ सम्मत्तो. १४ नेमिचंद. १५ विनवइए. १६ रत्त ( रत्तो). १७ मंदिरहिं. १८ समुदाओ. १९ पसाओ... . . . .

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