Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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- शब्दकोश ..
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८७-१०-१२, ९८-५. प्रामई वर्तमान बीजो पुः ए. व. २५-२०. वळी जुओ प्रामिउ १३६-८. प्रामिसिइ ६७-६. प्रामिस्यउं ९९-१४, ११८-९. प्रामी ९६-१७, ९७-४. प्रामीइ १००-१५. प्रामु १५८-१४. [सं. प्राप्नोति > पा. * प्रापुणति > प्रा. * प्राउणइ, प्रावइ > जू. गुज. प्रामइ.] 'र' कार विनानुं रूप जे अर्वाचीन भाषामा व्यापक छे ते पण मळे छे-पामइ २६-११. पामइं ५४-५, ७४-१५, ९७-१९, पामउ १५९-२०. पामिउ १३६-१३-१९. पामिस्यई ६७-१४, ७७-१४. पांमीइ ९२-२, ११३-१४. पांमीस्यइ .९८-१८. [सं. प्राप्नोति > पा. पापुणति > प्रा. पाउणइ, पावइ > जू. गुज. पामइ].
प्राहइं 'गुं करीने, मोटे भागे' अ. २४-१४-१५. प्राहि १४७-९. प्राहिई २२-१८. [सं. प्रायः]
प्रियागत 'वंशपरंपरागत.' वि. द्वि. ए. व. पु. ४४-१४. [सं. प्रजागत > परजागत, परयागत. सर० अर्वाचीन गुज. परियागत.' गुजरातीनी केटलीक बोलीओमां ‘परिया' शब्द 'प्रजा'ना अर्थमां वपराय छे. 'प्रजा' शब्दना आ 'परिया' अने ' प्रिया' रूपान्तरो नोंधपात्र छे. ]
पुण 'पण, वळी.'. अ. २३-२१, ३३-२०, ४१-१६, ५५-२२, ७८-२; ९८-२०, १२७-१७, १२९-१०, १३७-९-१३, १३९-२२, १४०-५-७, १४१-२१, १४५-२०, १४७-१५, १५०-१९, १५४-१-५, १६४-११, इत्यादि. [सं. पुनः । > प्रा. पुणो > अप. पुण] जुओ पणि.
पूजइ 'पहोंचे.' वर्तमान त्रीजो पु. ए. व. १४०-५. [सं. पूर्यते > प्रा. पुजइ. 'ज' नो 'ग' थवाथी जूनी गुज. मां ‘पूगई,' अर्वाचीन गुज. मां 'पूगे.']
__ पूर्व ‘जैन शास्त्रोनो एक विभाग.' द्वि. ब. व. न. ५-९-११. [आगमसाहित्यना अंगविभागमा बारमुं अंग ‘दृष्टिवाद' नामे हतुं, एमां चौद 'पूर्व ' हतां. दृष्टिवाद तेम ज पूर्वो घणा समय पहेलां लुप्त थई गयां होवानी परंपरा छे.]
फलदायन ‘फलदायक.' वि. प्र. ए. व. पुं. ११६-१४. बटींग 'मूर्ख. वि. प्र. ए. व. पुं. ५४-१९.
बडइल ‘गाडानी धरीनी अंदरनो खीलो.' प्र. ए. व, स्त्री. ११६-६. वळी जुओ बडहिल ११६-१३.
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