Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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षष्टिशतक प्रकरण.
११४-३, ११५-६,.११७-६-१२,..१२९-१०, १५२-४, १४३-१२-१४, १४४-३, १४५-१५, १४७-१२, १४९-१४, १५५-२१, १५७.२१, इत्यादि. जुओ अ.
इकि 'एक.' वि. प्र. ए. व. पु. १६४-५. [सं. एक] इक एक.' वि. तृ: ए. क. पुं. १६३-३, १६४-२. [सं: एक ]
इस्यउ 'आ प्रकारनो.' वि. प्र. ए. व. पु. ७३-१०. द्वि. ए. व. १४०-२२. वळी जुओ इसी २४-६; इसु ६५-६, ६६-३, १५७-१. [सं. ईशिक > पा. ईदिस > प्रा. ईइस > जू. गुज. इसिउ ]
ई निश्चयार्थ अव्यय. केटलीक वार पादपूरक तरीके पण प्रयोजाय छे. ५-८-१२, १८-१४-१५, ७६-४, ८१-२२, ८४-४, ८६-१२, ८७-६. जुओ अ.
ई निश्चयार्थ' अव्यय. केटलीक वार पादपूरक तरीके पण प्रयोजाय छे. ८-२-२०, १९-८-९-११, २३-५-७-१६, २४-८, २८-१८, ३४-२२, ५०-५, ६४-१७-१८, ६६-१३, ६७-१७, ६९-७, ७४-११, ७५-१३, ७६-८-११, ८७-१६, ८८-१६, ९०-१५-१७-१९, ९७-९, ९८-१०-१४, ९९-१९, १०१-१६, १०३-१, १०७-२-४, १०८-२, ११५-१, ११७-१२, ११८-१८, १२९-१६-१८२०, १३३-३, १.३७-१५, १३९-९, १४१-१०, १४.२-१८-२.१, १४५-१९, १४७-१४, १५४-५, १५७-२१, १५८-१-२, इत्यादि: जुओ अ. - ईणं 'एनाथी.' सर्व. तृ. ए. व. न. ९१-१४, ९९-१३, १३०-१७ [सं. एतेन > प्रा. एएण > जू. ईण. वळी जू. गुज. मां ' ईणई' एवं रूप पण मळे छे, जेनो आ — ईणं' संक्षेप छे. अर्वाचीन. 'गुज. ' एणे,' लोकबोलीमां (खास करी उत्तर गुजरातमां) 'एण.' आ छेल्ला शब्दना अंतिम 'ण'नो अकार प्लुत छे.] ...ईहइ ‘इच्छे छे.' वर्तमान बीजो पु. ए. व. ४-११. [सं. v. ईह्] ' , उषाण 'कहेवत.' द्वि. ए. व. पु. १४६-१४. दीर्घ 'ऊ' वाळं रूप ऊखाणड पण मळे छे-प्र. ए. व. १०.३-१. [सं. उपाख्यान > प्रा. उवक्खाण. अर्वाचीन गुज. ' उखाणू,' म. 'उखाणा.. सोळमा शतकमा थयेलो गुजराती कवि मांडण पोतानी 'प्रबोधवत्रीसी'मां प्रयोजेली बहुसंख्य कहेवतोने ‘उखापा' कहे छे. जेमके-'उखाणा बहु आदर करी, जोयो अर्थ विधि विस्तरी' (पं. ६४१). वळी हाथप्रतमा ए काव्यनो 'मांडण बंधाराना उखाणा तरीके निर्देश के. अर्वाचीन गुज, मां ' उखागुं'तो ' समस्या' एवो अर्थः वधारे प्रचलित छ.] . . . .
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