Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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शब्दकोश .
__ मासोजी 'आसो मासनी.' ष. ए. व. स्त्री. ७९-४. [सं. अश्वयुक्.> प्रा. अस्सोअ > गुज. आसो.] 'जी'.अहीं, कच्छी अने सिन्धीनी जेम, षष्ठीना प्रत्यय तरीके छे ए. नोंधपात्र छे...
आस्ता 'आस्था, श्रद्धा.' प्र. ए. व. स्त्री. १४०-५-७, ३८-८. द्वि. ए. व. स्त्री. ३८-८. [सं. आस्था ] ... आहणतउ 'घा करतो.' व. कृ. प्र. ए. व. पु. १००-१. [सं. आहन् > प्रा. आहण] . आहणिउ 'घा करवामां आवेलो.' भू. कृ. प्र. ए. व. पु. ११२-४ [सं. आहन् > प्रा. आहण ]
आंग 'अंग, जैन आगमसाहित्यनो एक विभाग. ' द्वि. ए. व. न. ५-९-११. [सं. अङ्ग > (अनुनासिक कोमल थवाथी) आंग]. आगमसाहित्यमा 'अंग' तरीके ओळखाता बार ग्रन्थो हता, पण एमांनु बारमुं अंग ‘दृष्टिवाद' लुप्त थयुं छे; अगियार अंगो विद्यमान छे.
आंगमइ ‘स्वीकारे छे, भोगवे छे.' वर्तमान त्रीजो पु. ए. व. ८९-४. आंगमी सं. कृ. १२४-१. आंगमीनइ सं. कृ. १२३-७-८. [सं. अङ्ग +/ गम् उपरथी. जुओ आंगीगमइ.]
आंगीगमई ‘स्वीकारे छे, भोगवे छे.' वर्तमान त्रीजो पु. ए. व. ८९-१६. आ रुप ' आंगी' (अंगमां) अने ‘गमइ' (जाय छे) एवा बे शब्दोनुं बनेलं छे, अने ते उपर सूचवेली व्युत्पत्तिनुं समर्थन करे छे. जुओ आंगमइ.
आंगे 'अंगो वडे.' तृ. ब. व. न. ११६-६. [सं. अङ्ग > प्रा. आंग].
इ निश्चयार्थ अव्यय. केटलीक वार पादपूरक तरीके पण प्रयोजाय छे. ६-७, ७-१६, ८-१२-१३-१५, ९-११-१७, १०-९-१५-१८-१९-२१, १५-९, १६-५, १७-२, १८-१०-२२, १९-१५-१७-१८, २०-५, २१-१-५-१९, २२-३-५९-१३-२०, २३-२-५-८, २४-१-७-१२, २६-१२, २७-१-४-९-१८, २८-६, २९-६, ३३-३, ३९-१, ४३-१७, ४६-१८, ४९-१९-२१, ५७-७-२०, ५९-८, ६४-१२, ६५-२-१२-१९, ६७-४, ६८-८, ७१-८-१०, ७४-५-२०, ७७-१२, ८१-१-१३२०, ८२-१६, ८४-३-७, ८५-४, ८७-१, ८९-११, ९०-६-७-८-१५-२०, ९१-१३-४-१३-१४, ९२-१, ९३-९, ९५-५-८, ९६-१८-२३, ९८-३, १०२-११, १०४-१७, १०७-५, ..१०८-७-८, . १.०९-१:६, १११-५, ११२-१८, ११३-७,
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