Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
View full book text ________________
त्रण बालावबोध सहित
[सो.] संपइ० हिवडां प्रभु श्रीजिनवल्लभसूरिनई वचनिई जां धर्मनी परी विधि अनइ साचा विवेकनउं' जाणिवउं न उल्लसई न ऊपजइ ता निबिड० ते निबिड मोह अजाणिवउं अनइ मिथ्यात्त्वनी ग्रंथि तेहनउं गाउं माहात्म्य गाढउ महिमा । ते गाढा अजाण अनइ गाढा मिथ्यात्त्वी कही ॥ १५३ ॥
१५३
[ जि.] संप्रति हिवडां प्रभु श्रीजिनवल्लभसूरि तेहनइ वचनिई जउ विधिविवेकपणउ न उल्लसइ, विधि जिनसिद्धांत कर्त्तव्य तेहनउं विवेकपणउं, पापपुण्यनउं जाणिवापणउं जउ न ऊपजइ ता तउ पछइ निबिड मोह अज्ञान तद्रूप मिथ्यात्त्वग्रंथिका मिथ्यात्वन गांठ तेहउं माहात्म्य प्रभाव जाणिव ॥ १५३ ॥
IO
[.] सांप्रत प्रभु श्रीजिनवल्लभसूरिनइ वचनिई जेहनउं चित्त खरी विधि ऊपरि अनइ साचउ विवेक तेहनउं जाणिवउं तेह ऊपरि चित्त उल्लसह नहीं, तेहनई निबिड मोह अजाणिवउं वली मिथ्यात्त्वनी ग्रंथि तेहनउं गाउं महादुष्ट मोहनउं माहात्म्य जाणिवरं ॥ १५३ ॥
15
[ सो.] परमेश्वरना वचननी आशातनानुं करिवूं ते गाढउं विरूउं ।
[ जि.] अथ जिननी आशातना करिवानउं फल कहइ । बंधणमरणभयाई दुहाई तिक्खाई नेव दुक्खाई । दुक्खाण' दुहनिहाणं पहुवयणासायणाकरणं ॥ १५४ ॥ २० [सो.] बंधण० बांधिव, मारिवउँ अनेराइ भय एहवा जि' तीव्र दुःख ते दुःख न कही । ते थोडेसी' वेला" सहियां अनइ
C
१ विवेकनुं. २ जाणिवुं. ३ भयाई. ४ मे. दुक्खाई. ५ जि. मे. पहुवयणासायणं करणं. ६ बांधिवुं. ७ ' मारिवउं ' नथी. ८ जे. ९ थोडिसी. १० वेलां..
२०
Loading... Page Navigation 1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238