Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ त्रण बोलावबोध सहित १५९ जह जिम पहुसामग्गि जैन सामग्री तेहनई सँयोगि हूंतइ अम्हा रहई सम्यक्त्व सुलभ हुइ ॥ १६० ॥ [मे.] इसिउं विमासीनइ हे सुगुरु ! अम्हारउं स्वामीपणउं तिम करउ, जिम स्वामीनी सामग्रीनइ जोगिइं अम्हारडं मनुष्यपणउं सफल सुलभ थाइ ॥१६०॥ [जि.] अथ श्रीनेमिचंद्र भंडारी स्वनामांकित गाथा कहइ। एवं भंडारिअनेमिचंदरइयाओ कइवि' गाहाओ। विहिमग्गरया भव्वा पर्दतु जाणंतु जंतु सिवं ॥१६१ ।। [सो.] एवं० इम इसी रहिई नेमिचंद्र भंडारी-रची कीधीं ए केतलीइ १६० गाथा जे भव्य जीव खरों विधिमार्गनइ विषई तत्पर:० छंइं ते ए पढउ । एहनु अर्थ जाणउ । सम्यग् आराधीनइ मोक्षपदि जाउ । अनंतं सुख लहउ ॥ १६१॥ [जि.] एवं इणि प्रकारि भांडागारिक श्रीनेमिचंद्रई रचित कीधी केतलीएक गाथा विधिमार्गरतं भव्य जीवं पंढउं । तेंह गाथानउ अर्थ जाणउ । किम शिव मोक्षि निरुपद्रवि स्थानकि जंतु जाउ । भणहार जाणहार पुरुषहूई महापुण्यफलप्राप्ति हुई ॥ १६१ ॥ [मे.] इसी परिइं भंडारी श्रीनेमिचंद्रिई केतलीएक गाथा रची । अनइ जे विधिमार्ग खरी विधि तेहनइ विषइ रत में भव्यं जीव छइं ते ए पढउ । एहनउं अर्थ जाणउ । अनई आराधतां भणता जाणता शिवपद पामउ । अनंत सुख लहउँ ॥ १६१ ॥ [सो.] इति षष्टिशतकबालावबोध : समाप्तो विरचितः श्रीसोमसुन्दरसूरिपादैः सर्वजनोपकाराय । १ जि. में. कहवि. २ रहणई. ३ 'ते' नथी. ४ सो. नी बीजी प्रतमा मात्र आटली ज पुष्पिका छे-" इति षष्टिशतकबालावबोध समाप्ता॥ छ । श्रीः ॥ गंथान १०९६ श्लोकाः ॥ श्री। श्री। छ।” 90

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238