Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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प्रष्टिशतक प्रकरण -
[जि.] हु निश्चई जे जीवितव्य मात्रई धरेसि धरउं, च वली एहि विषमि दुःखदायकि दुःषमाकालि साययाणं पि श्रावकई नाम धरउं, हे प्रभो जिन ! तं पि तेहइ महाचुखं महा
आश्चर्य ॥ १५९॥ 5 [मे.] ईणइं कालि जे जीवितव्यमात्र धरउं अनइ हउं वली श्रावकनउं नाममात्रइ बहउं, हे प्रभो ! हे स्वामी ! ते महाआश्चर्य जे अतिविषम दुक्खमाकालि ॥ १५९॥
[सो.] वली गुरु प्रति कवि कहइ छइ ।
[जि.] अथ तात्त्विकाचंता कहइ । परिभाविऊण एवं तह गुरु करिज अम्ह सामित्तं । जह सामगिसुजोगो जह सुलह होइ मणुअत्तं ॥१६०॥
सो.] परिभाविळण. इसिउं विमासीनइ सद्गुरु ! अम्हारउ स्वामीपणउं तिम अम्हारी सार करिजो, जिम आगलि अम्हे धर्मसामग्रीनु रूडउ योग नामुं अनइ जिम मनुष्यपणउं सुलभ थाइ । 15जेह भणी सिद्धांतमाहे एह जि बोल गाढा दुर्लभ कहिया छइं- .
चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणि अ जंतुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि अ वीरिअं ॥
(उत्तराध्ययन, अध्ययन ३, गा. १) तथा-- 20 धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खाराहगा सया धन्ना ।
_ विहिबहुमाणी धन्ना विहिपक्खअदूसगा धन्ना ॥ १६० ॥
[जि.] देव आगलि वीनती करी गुरु आगलि वीनती करइ । हे गुरो! इसुं पूर्वोक्त गाथास्वरूप परिभाविऊण परिभावी विमासीनई तह तिम अम्ह सामित्तं अम्हारी धणीप करिज करिजो ।
१ पहु. २ जि. सुजोगे, मे. 'सजोगे. ३ जि. सलहं, मे. सहलं. ४ जि. -सम्मत्तं. ५ धर्मसामग्री.
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