Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ श्रणालानयो सहित दढ़सीलबसनियमो पोसहआवस्सएसु अक्खलिओ० । (उपदेशमाला, गा. २३.४ ) इत्यादिके जे श्रावकनउं रहस्य बोलिउं छइ ते जाणीनइ जेती वारइं आषणपउं जोईइ ता कह० तु किहां आपणपासाहि सुश्रावकाएं ? जं चिन्नं० जे आगलि धीर पुरिषे आनंद कामदेवादिके समाचरिउं 3 तेहनु लवलेश आपणप्रामाहि नथी ॥ १५५ ॥ [जि.] प्रभु परमेश्वर तेहनउं वचन 'विधि रहस्य नाऊण विजाणई अनइ जाव जां लगइ आत्मा ब्रह्मस्वरूप दीसइं तां लगइ किम सुश्रावकपणउं ? जे सुश्रावकपणउं धीरपुरुषे आचीर्ण आचरिउं ॥१५५॥ [मे०] प्रभुरतन वीतरागदेव तेहनी भाषी विधि तेहनउं रहस्या० जाणीनइ जउ आपणउं आत्मानउं स्वरूप जोईइ तउ किहां सुश्रावक-* पणउं ? कांइं ? आगइ जे आनंद कामदेवादिक धीर पुरुष श्रावक हूआ तेहनउ तउ लवलेश मात्र आपणपामाहि नहीं दीसता ॥ १५५ ।। [सो.] हिव आपणु मनोरथ चिहु गाहे कवि कहइ छइ । [ज़ि०] अथ श्रीनेमिचंद्र भंडारी पांचे ,गाथाई आपणाः5 मनोरथ प्रकासइ । जइवि हु उत्तमसावयपयडीए चडणकरणअसमत्थो । तह वि पहुवयणकरणे सणोरहो मज्झ हिअअम्मि ॥१५६॥ [सो.] जइ वि० यद्यपि उत्तम श्रावकनी पगथीइं चडवू. करी न सकुं, तीणइं वहिरइ असमर्थ छउं तह वि० तउ प्रभु३० तीर्थकरनां वचन आराधिवानइ विषइ माहरइ हिअइ मनोरथइ छइ । किमइ वीतरागनी आज्ञा आराधाइ तु रूडउं ॥ १५६ ॥ ___ १ बिहु. २ 'कवि' नथी. ३ यद्यपिई. ४ वहरइ. ५ विषय. ६ मनोर्थ. ७ किमहइ.

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238