Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
View full book text ________________
षष्टिशतक प्रकरण
अप्पा वि जाण वइरी तेसिं कह होइ परजिए करुणा। चोराण बंदियाण' य दिटुंतेणं मुणेअव्वं ॥११८॥ ... [सो.] अप्पा० जेहनइ आपणउ आत्माइ वइरी । आपणा जीवइनूं हित नथी करतां तेव्हा पाप करई छई। जेव्हा आपणउ 3 आत्माइ गाढउ संसारमाहि रुलइ । तेहहूई अनीरा' जीवनइ विषइ करुणा किम हुइ ? चोराण० जिम चोर अथवा जे माणस बंदि धरइं तेहनइ दृष्टांतिइं जाणिवं । जिम ते चोरी करतां, बंदि धरतां, परहूई अनर्थ करतां आपणउं न चीतवई । 'अम्हे धरीसिउं, मारीसिउं, अनर्थ प्रामिस्यउं' ए वातं. कांई विमासई नहीं। तिम तेहइ पाप करता 1०चीतवइं नहीं ॥ ११८॥
[जि.] जाण. जेहां पुरुषहूई आपणपउ आत्मा वइरी, आपणा जीवइहूई हित न करइं तेसिं तेहां पुरुषहहूई परजिए पारका जीव ऊपरि किमु करुणा दया हुइ ? अपि तु न हुई । ए वात
चोराण चोरनइ दृष्टांति, बंदियाण य बंदी बंदोर बांदि झाल्या लोक 15ते बिहुने दृष्टांति जाणिवी । जिम चोर आपणा जीवइ ऊपरि दया
अणकरतउ हूंतउ पारका जीव ऊपरि दया न करई । जइ चोर आपणाई जीवहूई विरूउं चीतवी लोकइहूई परद्रव्य लेता मारइ । अनइं जे जे आपणा जीवहूई हित न करइं ते ते पारका जीव ऊपरि दयाई न करई । जिम चोर। अनइं जे जे पारका जीव ऊपरि दया करइं ते ते आपणाइ ५०जीवहूई हित करई। जिम सुसाधु लोक । इसुं प्रमाणिकनउं वचनई जाणितउं ॥ ११८॥
[मे.] जेहनइ आपणउ आत्मा वयरी, आपणा आत्मा ऊपरि दया न ऊपजइं तेहनइ अनेरा जीव ऊपरि करुणा दया किम हुइ ?
१ बंदियाणइ. २ करय. ३ जेहे. ४ अनेरा.
Loading... Page Navigation 1 ... 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238