Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
View full book text ________________
१४२
“पष्टिशतकं प्रकरण
रागद्वेष मूकी मध्यस्थपणइ समय सिद्धांतनी दृष्टिं सम्यग् प्रकारि गुरु परीषी लेवउ, पणि लोकनउ प्रवाह कलकल 'ए माहरउ, ए ताहरउ' एवहउ हलबोल मूकीनइ ॥ १४० ॥
- [सो.] ईणइं लोकप्रवाहिइं हिवडां जाणइ क्षुभई छई। ए वात 5 कहइ छ।।
[जि.] अथ पूर्वोक्त लोकप्रवाहनउं स्वरूप कहइ । संपई दसमच्छेरयनामायरिएहि जणिअजणमोहा । सुयधम्माओं निउण विचलंति बहुजणपवाहाओ॥१४१॥
[सो.] संपइ० हिवडां अस्संजयाण पूआ इसिउं दसमुं अछेरुं उ०प्रवर्तइ छइ । ईणं करी गुणरहित नामिइं आचार्य घणा थिया । तीणइं करी जणिअजण लोक रहइं मोह कहीइ भ्रम वरांसउ पडिउ । न जाणीइ केहउ गुरु । इसिइं छतई जे निपुण डाहा चतुर तेहइ घणा लोकना प्रवाहमाहि पडिआ हुंता साचा धर्मतउ चूकई चलई छई, साचा गुरुनइ अणलहिवई ॥ १४१॥ 15 [जि.] संप्रति हिवडां दसमइ आश्चर्यि ऊपना नामायरिएहिं नामधारक आचार्य तेहे जनित ऊपजाविउ जन अज्ञाततत्त्व लोक तेहना सरीषउ मोह अज्ञानपणउं जेहां निपुणांहूई छई ते जनितजनमोह । एवहा हूंता निउण वि निपुणई ज्ञाततत्त्वई सुभधर्म हूंता चालई । किसा प्रमाणइतउ ? बहुजणपवाहाओ बहु घणा जण लोक तेहना १०प्रवाहइतउ । एक नामधार आचार्य मोह ऊपजावइ । लोकप्रवाह पुण शुभधर्म हूंतउ डाहाई भोलवइ । तिणि कारणि लोकप्रवाह मेल्हिवउ ॥ १४१॥
१ जि. मे. संपय. २ तह धम्माओ. ३ जि. नियण. ४ वर्तइ. ५ परिउ.
Loading... Page Navigation 1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238