Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
View full book text ________________
१३०
षष्टिशतक प्रकरण .
दूरस्थोऽपि समीपस्थो यो यस्य हृदि वर्तते ।
चन्द्रः कुमुदखण्डानां दूरस्थोऽपि प्रबोधकः ॥ १२९॥ [मे.] दीठाइ हूंता केतला गुरु धर्मतत्त्वना जाण छई तेहनइ हीयइ रमइ नहीं, गमई नहीं। अनइ केतलाइ गुरु अणदीठाइ हूंता 5 जाणना हीयानइं रुचई । श्रीजिनवल्लभसूरिनी परिइं । किम ?
श्रीजिनवल्लभसूरिनां कीधां पिंडविशुद्धिप्रमुख प्रकरण देषीनइ जिम नेमिचंद्र भंडारीनइ मनि अदृष्टिं हर्ष ऊपनउ ॥ १२९॥
[लो.] हव कुगुरु ऊपरि बात कहइ छड्।
[जि.] अथ धर्मबाह्य पुरुषनी बात कहइ छइ । 10 अजया अइपाविठ्ठा सुद्धशुरू जिणवरिंदतुल्ल त्ति। जो इह एवं मन्नइ सो विमुहो सुद्धधम्मस्त ॥ १३०॥
[सो.] अजया जे गुरु अजयणावंत छई, जीवनी विराधना करइ छ।।
• दगपाणं पुष्फफलं अणेसणिजं गिहत्थकिच्चाई । अजया पडिसेवंति जइवेसविडंबगा नवरं ॥ .
(उपदेशमाला, गा. ३४९) ईणं श्रीउपदेशमालानी गाहां जे कहिया छइं, अइपाविट्ठा अतिपापिष्ट पाप बोलतां करतांई जेहहूई शंका. नथी एव्हाइ गुरु शुद्धचारित्रिया गुरु भणी मानइं, 'ए अम्हारइ जिनवरेंद्र तीर्थकर समान ।' 20जो इह. जे अजाणइ इम मानई ते सूधा धर्महूई विमुख ऊपराठउ . जाणिवउ । तेहहूई धर्म केहांइं टूकडउ नथी ॥ १३० ॥ : [जि.] अजया इन्द्रियजयरहित अनइ पापिष्ट आरंभना करणहार हुई एवहा अनइ एवहा जाणइ जु 'ए गुरु शुद्धचारित्री
१ टूकड़इ,
Loading... Page Navigation 1 ... 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238